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८.
ह.
षष्ठ प्रकाश
परकाय प्रवेश एवं प्राणायाम अनावश्यक एवं अपारमार्थिक
है, प्रत्याहार और धारणा का स्वरूप ।
सप्तम प्रकाश
ध्यान का स्वरूप, धर्म-ध्यान के भेद और पिंडस्थ ध्यान का वर्णन ।
१०. अष्टम प्रकाश
पदस्थ - ध्यान की साधना, ध्यान के विभिन्न प्रकार, विभिन्न मंत्र एवं विद्याओं की साधना तथा उसके फल का वर्णन ।
११. नवम प्रकाश
८
रूपस्थ ध्यान का वर्णन एवं उसका फल ।
१२. दशम प्रकाश
रूपातीत ध्यान, उसके भेद एवं उसके फल का वर्णन ।
१३. एकादश प्रकाश
शुक्ल-ध्यान, उसके अधिकारी, उसके भेद, सयोगी और प्रयोगी अवस्था में होने वाला शुक्ल-ध्यान, उसका क्रम, घाति-कर्म का स्वरूप, उसके क्षय से लाभ, तीर्थंकर और सामान्य केवली का भेद, तीर्थंकर के अतिशय, केवली समुद्घात, योग-निरोध करने की साधना एवं निर्वाण-पद का वर्णन ।
१४. द्वादश प्रकाश
ग्रन्थकार का स्वानुभव, मन के भेद, सिद्धि प्राप्ति का उपाय, गुरु- सेवा का महत्व, मन शान्ति का उपाय, इन्द्रिय एवं मन को जीतने का उपाय, आत्म-साधना एवं उपसंहार ।
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