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एक परिशीलन
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दशम-प्रकाश
प्रस्तुत प्रकाश में रूपातीत-ध्यान के स्वरूप, ध्यान के क्रम एवं उसके फल का वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त धर्म-ध्यान के प्रकारान्तर से चार भेदों-प्राज्ञा-विचय, अपाय-विचय, विपाक-विचय, संस्थानविचय, उसके स्वरूप एवं उससे मिलने वाले आत्मिक आनन्द एवं पारलौकिक फल का भी वर्णन किया है। एकादश-प्रकाश
प्रस्तुत प्रकाश में शुक्ल-ध्यान का वर्णन है। इसमें शुक्ल-ध्यान के स्वरूप, उसके अधिकारी, उसके भेद एवं भेदों के स्वरूप, त्रि-योग१. मन, २. वचन, और ३. काय योग की अपेक्षा से शुक्ल-ध्यान के विभाग का विस्तार से वर्णन किया है तथा सयोगी एवं अयोगी अवस्था में किए जाने वाले शुक्ल-ध्यान का भी उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त शुक्ल-ध्यान के स्वामी एवं उसके फल का भी निर्देश किया है । ___ शुक्ल-ध्यान का वर्णन करने के पश्चात् आचार्य श्री ने घाति-कर्म एवं उसके नाश से मिलने वाले फल का वर्णन किया है और तीर्थ कर एवं सामान्य केवली में रहे हुए अतिशयों आदि के अन्तर को बताया है । इसमें तीर्थंकर भगवान् के चौंतीस अतिशयों का भी वर्णन है । अन्त में केवली किस अवस्था में समुद्घात करते हैं, इसका वर्णन करके योग निरोध करने की प्रक्रिया का तथा उससे प्राप्त होने वाले निर्वाण पद एवं मुक्त पुरुष-सिद्धों के स्वरूप का वर्णन किया है। . द्वादश प्रकाश
पीछले ग्यारह प्रकाशों में पागम एवं गुरु के उपदेश के आधार पर योग-साधना का वर्णन किया है। परन्तु, प्रस्तुत प्रकाश में प्राचार्य । हेमचन्द्र ने अपने अनुभव के प्रकाश में योग-साधना का निरूपण किया
है। इसमें उन्होंने मन के-१. विक्षिप्त मन, २. यातायात मन,
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