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को स्थायी बनाए रखने के लिए, वहाँ के धर्म-प्रेमी श्री ऋषभचन्द्र जी जौहरी तथा श्री किशनलाल जी जैन ने इस ग्रन्थ-रत्न को प्रकाशित करने के लिए आर्थिक सहयोग दिया है। जौहरी जी महासती श्री उम्मेद कुँवर जी म० के गृहस्थावस्था के संबन्धी हैं और साहित्य प्रेमी हैं । इससे पहले भी आपकी ओर से जैन-सिद्धान्त पाठमाला आदि कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप श्री मांगीलाल जी जौहरी के सुपुत्र और दिल्ली के स्थानकवासी समाज में अग्रगण्य श्रावक हैं। आपका जीवन धार्मिक संस्कारों से ओत-प्रोत है और हृदय उदार है।
श्री किशनलाल जी जैन भी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित श्रावक हैं। आप कागज का व्यवसाय करते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में आपका बहुमूल्य योग रहा है। उभय महासती जी म० का मेरे पर सदा अनुग्रह रहा है। अतः श्रद्धेय महासती जी म० एवं उभय श्रावकों का मैं हृदय से आभारी हूँ।
परम श्रद्धेय उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी ने योग-शास्त्र पर तुलनात्मक एवं विश्लेषणात्मक भूमिका लिखकर ग्रन्थ के महत्व को चमका दिया है और मुनि समदर्शी जी (आईदान जी) ने ग्रन्थ के संपादन का दायित्व अपने ऊपर लेकर मेरे बोझ एवं श्रम को कम कर दिया तथा प्रस्तुत प्रकाशन को सुन्दर बनाने का सफल प्रयत्न किया है । इस प्रयास के लिए मैं उपाध्याय श्री जी एवं मुनि श्री जी का आभार मानता हूँ।
भारतीय भारती भवन ब्यावर (राजस्थान)
– મન્નુ મરહ્યું
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