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________________ योग-शास्त्र जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण का ध्यान-शतक भी पागम की शैली में लिखा गया है। पागम युग से लेकर यहां तक योग-विषयक वर्णन में प्रागमशंली की ही प्रमुखता रही है। परन्तु, प्राचार्य हरिभद्र ने परम्परा से चली आ रही वर्णन-शैली को परिस्थिति एवं लोक-रुचि के अनुरूप नया मोड़ देकर और अभिनव परिभाषा करके जैन योग-साहित्य में अभिनव युग को जन्म दिया। उनके बनाए हुए योग-विषयक ग्रन्थ-योग-बिन्दु, योगदृष्टि-समुच्चय, योग-विशिका, योग-शतक और षोडशक, इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं । उक्त प्रन्थों में आप केवल जैन परम्परा के अनुसार योग-साधना का वर्णन करके ही सन्तुष्ट नहीं हुए, बल्कि पातञ्जल योग-सूत्र में वर्णित योगसाधना एवं उसकी विशेष परिभाषाओं के साथ जैन साधना एवं परिभाषाओं की तुलना करने एवं उसमें रहे हुए साम्य को बताने का प्रयत्न भी किया। प्राचार्य हरिभद्र के योग विषयक मुख्य चार ग्रन्थ है-१. योगबिन्दु, २. योगदृष्टि-समुच्चय, ३. योग-शतक, और ४. योग-विशिका । षोडशक में कुछ प्रकरण योग विषयक हैं, परन्तु इसका वर्णन उक्त चार ग्रन्थों में ही पा जाता है। इसमें योग विषयक किसी भी नई बात का उल्लेख नहीं मिलता है। अतः उनके योग से सम्बन्धित चार ग्रन्थ ही मुख्य हैं। इनमें प्रथम के दो ग्रन्थ संस्कृत में हैं और १. हरिमद्रीय आवश्यक वृत्ति, पृष्ठ ५८१ । २. समाधिरेष एवान्यः संप्रज्ञातोऽभिधीयते । सम्यकाकर्षस्पेण वृत्यर्थ-जानतस्तथा ॥ असंप्रज्ञात एषोऽपि समाधिर्गीयते परः। निरवाशेषवृत्यादि तत्स्वरूपानुवेषतः ॥ -योगबिन्दु, ४१८, ४२०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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