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एक परिशीलन इस तरह पातञ्जल योग-सूत्र का गहन अध्ययन करने एवं उस पर अनुचिन्तन करने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि उसके वर्णन में जैनदर्शन के साथ बहुत कुछ समानता है, और इस विचार समानता के कारण प्राचार्य हरिभद्र जैसे उदार एवं विराट हृदय जैनाचार्यों ने अपने योग विषयक ग्रन्थों में महर्षि पतञ्जलि की विशाल दृष्टि के लिए प्रादर प्रकट करके गुण-ग्राहकता का परिचय दिया है।' यह नितान्त सत्य है कि जब मनुष्य शाब्दिक ज्ञान की प्राथमिक भूमिका से प्रागे बढ़ जाता है, तब वह शब्दों की पूछ न खींच कर चिन्ता-ज्ञान तथा भाव-ज्ञान से उत्तरोत्तर-अधिकाधिक एकता वाले प्रदेश में स्थित होकर अभेद एवं निष्पक्ष-पक्षपात रहित आनन्द का अनुभव करता है। बौद्ध योग परम्परा ____ बौद्ध साहित्य में योग के स्थान में 'ध्यान' और 'समाधि' शब्द का प्रयोग मिलता है । बोधित्व प्राप्त होने के पूर्व तथागत बुद्ध ने श्वासोच्छवास का निरोध करने का प्रयत्न किया। वे अपने शिष्य
उक्त द्रव्य-पर्याय.रूप या उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य-इस त्रिरूपता का ही चित्रण है । इसमें कुछ मिन्नता भी है, वह यह है कि योग-सूत्र सांख्य-वर्शन के अनुसार निर्मित है, इसलिए वह 'ऋतेचिदशक्तः परिणामिनो भावः' इस सूत्र को मानकर परिणामवाद का उपयोग सिर्फ जड़ भाग-प्रकृति में करता है, चेतन में नहीं। और जनवर्शन 'सर्वे भावाः परिणामिनः' ऐसा मानकर परिणामवाद का उपयोग जड़-चेतन दोनों में करता है। इतनी मिन्नता होने पर
भी परिणामवाद की प्रक्रिया दोनों में एक-सी है। १. . योग-बिन्दु, ६६; योगदृष्टि समुच्चय, १००. २. शम्ब, चिन्ता तथा मानना ज्ञान के स्वरूप को विस्तार से समझने
की जिज्ञासा रखने वाले पाठक उपाध्याय यशोविजय बी कृत अध्यात्मोपनिषद्, श्लोक ६५, ७४ देखें।
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