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________________ ध्यान ध्यानं विधित्सता ज्ञेयं ध्याता ध्येयं तथा फलम् । सिध्यन्ति न हि सामग्री विना कार्याणि कर्हिचित् ॥ १ ॥ सप्तम प्रकाश ध्यान करने की इच्छा रखने वाले साधक को तीन बातें जान लेनी चाहिए - १. ध्याता - ध्यान करने वाले में कैसी योग्यता होनी चाहिए ? २. ध्येय – जिसका ध्यान करना है, वह वस्तु कैसी होनी चाहिए ? ३. ध्यान के कारणों की समग्रता, अर्थात् सामग्री कैसी हो ? क्योंकि सामग्री के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता है । ध्याता की योग्यता अमुश्वन प्राणनाशेऽपि संयमैकधुरीणताम् । परमप्यात्मवत् पश्यत् स्वस्वरूपापरिच्युतः ॥ २ ॥ उपतापमसंप्राप्तः शीतवातातपादिभिः । पिपासुरमरीकार योगामृत - रसायनम् ॥ ३ ॥ रागादिभिरनाक्रान्तं क्रोधादिभिरदूषितम् । आत्मारामं मनः कुर्वन्निर्लेपः सर्वकर्मसु ॥ ४ ॥ विरतः कामभोगेभ्यः स्वशरीरेऽपि निस्पृहः । संवेग हृदनिर्मग्नः सर्वत्र समतां श्रयन् ॥ ५ ॥ 'नरेन्द्रे वा दरिद्रे वा तुल्य-कल्याण-कामना । श्रमात्र करुणा-पात्रं भव-सौख्य-परांमुखः ।। ६ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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