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पंचम प्रकाश
प्रकार का वर्ण उत्पन्न होता रहे और नाभि से अकस्मात् हिक्का - हीक उठे, तो उसकी दो मास में मृत्यु होती है, ऐसा समझना चाहिए । जिह्वा नास्वादमादत्ते मुहुः स्खलति भाषणे ।
श्रोत्रे न शृणुतः शब्दं गन्धं वेत्ति न नासिका ।। १५८ ।। स्पन्देते नयने नित्यं दृष्ट-वस्तुन्यपि भ्रमः । नक्तमिन्द्रधनुः पश्येत् तथोल्कापतनं दिवा ॥ १५६ ॥ न च्छायात्मनः पश्येद्दर्पणं सलिलेऽपि वा । अनब्दां विद्युतं पश्येच्छिरोऽकस्मादपि ज्वलेत् ।। १६० ।। हंस - काक - मयूराणां पश्येच्च क्वापि संहतिम् । शीतोष्णखर - मृद्वादेरपि स्पर्शं न वेत्ति च ।। १६१ ।। श्रमीषां लक्ष्मणां मध्याद्यदैकमपि दृश्यते । जन्तोर्भवति मासेन तदा मृत्युर्न संशय ॥ १६२ ।। यदि कोई व्यक्ति अपनी जिह्वा के स्वाद को जानने में असमर्थ हो जाए और बोलते समय लड़खड़ा जाए, कानों से शब्द सुनाई न दे और नासिका गंध को ग्रहण करना बन्द कर दे, और उसके नेत्र निरन्तर फड़कते रहें, देखी हुई वस्तु में भी भ्रम उत्पन्न होने लगे, रात्रि में इन्द्रधनुष दृष्टिगोचर होता हो, दिन में उल्कापात दिखाई दे । इसके अतिरिक्त यदि उसे दर्पण में प्रथवा पानी में अपनी प्राकृति दिखाई न दे, बादल न होने पर भी बिजली दिखाई दे और अकस्मात् ही मस्तक में जलन उत्पन्न हो जाए । और उस व्यक्ति को हंस, काक और मयूरों का किसी जगह झुंड दिखाई दे और शीत, उष्ण, कठोर तथा कोमल स्पर्श का ज्ञान लुप्त हो जाए ।
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१. श्री केसर विजय महाराज ने ऐसा अर्थ किया है कि हंस, काक और मयूर को मैथुन करते हुए देखे ।
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