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________________ १७६ योग-शास्त्र तथैव वायौ प्रवहत्येकत्र दश वासरान् । विंशत्यभ्यविकामह्नां जीवेत्सप्तशतीं ध्रुवम् ।। ६५ ।। ऊपर कहा जा चुका है कि जिस व्यक्ति की सूर्य-नाड़ी में लगातार पाँच दिन वायु चलता रहे, तो वह १०८० दिन जीवित रहता है । यहाँ छह, सात, आठ, नौ या दस दिन तक उसी एक नाड़ी में वायु चलने का फल दिखलाया गया है । वह इस प्रकार है यदि एक ही सूर्य नाड़ी में छह, सात, आठ, नौ या दस दिन पर्यन्त .. वायु बहता रहे, तो क्रमशः १, २, ३, ४, ५ चौबीसी दिन १०८० दिनों में से कम करके जीवित रहने के दिनों की संख्या जान लेना चाहिए । इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - यदि छह दिन तक सूर्यनाड़ी में वायु चले तो १०८०-२४=१०५६ दिन तक जीवित रहता है। यदि सात दिन तक एक सूर्यनाड़ी में ही वायु चलता रहे तो १०५६ दिनों में से दो चौबीसी अर्थात् २४ x २=४८ दिन कम करने से १०५६-४८ = १००८ दिन जीवित रहता है । यदि आठ दिन तक उसी प्रकार वायु चलता रहे तो १००८ दिनों में से तीन चौबीसी अर्थात् २४४ ३७२ दिन कम करने से १००८-७२ =९३६ दिन जीवित रहता है। ___ यदि एक ही नाड़ी में नौ दिन पर्यन्त वायु चलता रहे तो ६३६ में से चार चौबीसी अर्थात् २४ x ४=६६ दिन कम करने से ६३६-६६ ८४० दिन जीवित रहता है। . यदि पूर्वोक्त पौष्ण-काल में लगातार दस दिन तक सूर्य-नाड़ी में वायु चलता रहे, तो पूर्वोक्त ८४० दिनों में से पांच चौबीसी अर्थात् २४x ५=१२० दिन कम करने से ८४० - १२०=७२० दिन तक ही जीवित रहता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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