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________________ १७५ पंचम प्रकाश सातवीं राशि भोगी हो, तब 'पौष्ण' नामक काल होता है । इस पौष्णकाल में मृत्यु का निर्णय किया जा सकता है । दिनार्धं दिनमेकं च, यदा सूर्ये मरुद्वहन् । चतुर्दशे द्वादशेऽब्दे मृत्यवे भवति क्रमात् ॥ ८८ पौष्ण काल में यदि आधे दिन तक सूर्य - नाड़ी में पवन चलता रहे, तो चौदहवें वर्ष में मृत्यु होती है। यदि पूरे दिन सूर्य - नाड़ी में पवन चलता रहे, तो बारहवें वर्ष में मृत्यु होती है । तथैव च वहन् वायुरहो- रात्रं द्वयहं त्र्यहम् । दशमाष्टमषष्ठाब्देष्वन्ताय भवति क्रमात् ॥ ८६ ॥ पौष्ण काल में एक हो- रात्र, दो दिन या तीन दिन तक सूर्य - नाड़ी में पवन चलता रहे तो क्रम से दसवें वर्ष, आठवें वर्ष और छठे वर्ष मृत्यु होती है। वहन दिनानि चत्वारि तुर्येऽब्दे मृत्यवे मरुत् । साशीत्यहः सहस्रे तु पश्चाहानि वहन् पुनः ॥ ६० ॥ पूर्वोक्त प्रकार से चार दिन तक वायु चलता रहे, तो चौथे वर्ष में और पाँच दिन तक चलता रहे तो तीन वर्ष - एक हजार और अस्सी दिन में मृत्यु होती है । एक द्वि- त्रिचतुःपञ्च चतुर्विंशत्यहः क्षयात् । षडादीन् दिवसान् पञ्च शोधयेदिह तद्यथा ॥ ६१ ॥ षट्कं दिनानामध्यर्कं वहमाने समीरणे । जीवत्यां सहस्रं षट्पञ्चाशदिवसाधिकम् ।। ६२ ।। सहस्रं साष्टकं जीवेद्वायौ सप्ताह वाहिनि । सषट्त्रिंशन्नवशतीं जीवेदष्टाह वाहिनि ॥ ६३ ॥ एकत्रैव नवाहानि तथा वहति मारुते । श्रह्नामष्टशतीं जीवेच्चत्वारिंशद्दिनाधिकाम् ॥ ६४ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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