SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम प्रकाश १६५ जिसका श्वेत वर्ण है, शीतल स्पर्श है और जो नीचे की ओर बारह अंगुल तक शीघ्रता से बहने वाला है, उसे 'वरुण वायु'-जल-तत्त्व कहते हैं । ३. पवन-वायु उष्णः शीतश्च कृष्णश्च वहन्तिर्यगनारतम् । षडंगुल-प्रमाणश्च वायुः पवन-संज्ञितः ।। ५० ।। पवन-वायु-तत्त्व कहीं उष्ण और कहीं शीत होता है। उसका वर्ण काला है । वह निरन्तर छह अंगुल प्रमाण बहता रहता है । ४. दहन-वायु बालादित्य - सम-ज्योतिरत्युष्णश्चतुरंगुलः । आवर्त्तवान् वहन्नूवं पवनः दहनः स्मृतः ।। ५१ ।। दहन-वायु-अग्नि-तत्त्व उदीयमान सूर्य के समान लाल वर्ण वाला है, अति उष्ण स्पर्श वाला है और ववंडर की तरह चार अंगुल ऊँचा बहता है। इन्द्रं स्तम्भादिकार्येषु वरुणं शस्तकर्मसु । ___वायुमलिन-लोलेषु वश्यादौ वह्निमादिशेत् ।। ५२ ।। जब पुरन्दर-वायु बहता हो तब स्तंभन आदि कार्य करने चाहिए। वरुण-वायु के बहते समय प्रशस्त कार्य, पवन-वायु के बहते समय मलिन और चपल कार्य और दहन-वायु के बहते समय वशीकरण आदि कार्य करने चाहिए। शुभाशुभ निर्णय छत्र - चामर-हस्त्यश्वारामराज्यादिसम्पदम् । मनीषितं फलं वायुः समाचष्टे पुरन्दरः ।। ५३ ।। रामाराज्यादिसम्पूर्णैः पुत्र-स्वजन-बन्धुभिः । . . सारेण वस्तुना चापि योजयेद् वरुणः क्षणात् ।। ५४ ॥ . १ श्वरामा। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy