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________________ व्यानमेव च । प्राणमपानसमानावुदानं प्राणायामैर्जयेत् स्थान- वर्ण - क्रियार्थ - बीज वित् ।। १३ ।। प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान, यह पाँच प्रकार का पवन है । कौन पवन शरीर के किस प्रदेश में रहता है ? किसका कैसा वर्ण-रंग है ? कैसी क्रिया है ? कैसा अर्थ है ? और कैसा बीज है ? इन बातों को जान कर योगी प्राणायाम के द्वारा इन पर विजय प्राप्त करे । २. पंचम प्रकाश टिप्पण - उक्त पाँच प्रकार के पवन - वायु का संक्षेप में निम्न स्वरूप है - ३. प्राण - उच्छ्वास - निश्वास का व्यापार 'प्राण वायु' है । अपान - मल, मूत्र और गर्भादि को बाहर लाने वाला वायु । समान — भोजन-पानी से बने रस को शरीर के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में पहुँचाने वाला वायु । ४. उदान - रस आदि को ऊपर ले जाने वाला वायु । ५. व्यान- - सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होकर रहा हुआ वायु । १. प्रारण वायु १५५ प्राणो नासाग्रहृन्नाभिपादांगुष्ठान्तगो हरित् । गमागम - प्रयोगेण तज्जयो धारणेन च ॥ १४ ॥ --- Jain Education International प्राण वायु नासिका के अग्रभाग में, हृदय में, नाभि में और पैर के अंगुष्ठ पर्यन्त फैलने वाला है । उसका वर्ण हरा है । गमागम के प्रयोग और धारण के द्वारा उसे जीतना चाहिए । टिप्पण - प्रस्तुत में 'गम' का अर्थ 'रेचक क्रिया', 'आगम' का अर्थ 'पूरकक्रिया' और धारणा का अर्थ 'कुम्भक क्रिया' है। इन तीनों क्रियाओं से एक प्राणायाम होता है । जिस वायु का जो स्थान है, उस स्थान पर "रेचक, पूरक और कुम्भक करने से उस वायु पर विजय प्राप्त की जा सकती है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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