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चौर्य-कर्म महापाप है
योग - शास्त्र
एकस्यैकं क्षणं दुःखं, मार्यमाणस्य जायते । सपुत्र-पौत्रस्य पुनर्यावज्जीवं हृते धने ॥६८॥
मारे जाने वाले जीव को अकेले को और एक क्षण के लिए दुःख होता है । किन्तु जिसका धन हरण कर लिया जाता है, उसे और उसके पुत्र एवं पौत्र को जीवन भर के लिए दुःख होता है ।
टिप्पण - प्राण हरण करने पर जिसके प्राण हरण किए जाते हैं, उसी को कष्ट होता है, दूसरों को नहीं । पर, धन हरण करने पर धन के स्वामी को भी कष्ट होता है और उसके पुत्रों एवं पौत्रों को भी कष्ट होता है । और मृत्यु के समय क्षण भर ही दुःख का संवेदन होता है, परन्तु धन का अपहरण करने पर धनवान् को जिन्दगी भर दुःख बना रहता है । इन दो कारणों से अदत्तादान, हिंसा से भी बड़ा पाप है ।
चोरी का फल
चौर्य्यपाप-द्रुमस्येह, वध - बन्धादिकं फलम् । जायते परलोके तु, फलं नरक - वेदना || ६६॥
चोरी के पाप रूप पादप के फल सकते हैं - १. इहलोक सम्बन्धी, २. से इस लोक में वध, बन्धन आदि नरक की भीषण वेदना का संवेदन
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दो भागों में विभक्त किये जा और परलोक सम्बन्धी । चोरी फल प्राप्त होते हैं और परलोक में करना पड़ता है ।
दिवसे वा रजन्यां वा, स्वप्ने वा जागरेऽपि वा । सशल्य इव चौर्येण, नैति स्वास्थ्यं नरः क्वचित् ॥७०॥
चौर्य कर्म करने के कारण मनुष्य कहीं भी स्वस्थ - निश्चिन्त नहीं रह पाता । दिन में और रात में, सोते समय और जागते समय, सदा-सर्वदा वह सशल्य - चौर्य-कर्म की चुभन से बेचैन ही बना रहता है ।
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