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________________ योग-शास्त्र असत्य भाषण करने से लोग उसे तुच्छ दृष्टि से देखने लगते हैं । असत्य बोलने से मनुष्य निन्दा का पात्र बनता है, बदनाम हो जाता है । असत्य भाषण से अधोगति की प्राप्ति होती है । अतः ऐसे अनर्थकर असत्य का परित्याग करना ही श्रेष्ट है । ४८ क्रोध या लोभ आदि के प्रवेश में आकर असत्य बोलने की बात तो दूर रही, विवेकवान् पुरुष को प्रमाद से — असावधानी, संशय या अज्ञान से भी असत्य नहीं बोलना चाहिए। जैसे प्राँधी से बड़े-बड़े पेड़ गिर जाते हैं, उसी प्रकार असत्य से कल्याण का नाश होता है । जैसे कुपथ्य के सेवन से व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, उसी प्रकार असत्य वचन से वैर - विरोध, विषाद - पश्चात्ताप और अविश्वास आदि कौन-कौन से दोष उत्पन्न नहीं होते ? मिथ्या भाषण करने से सभी दोषों की उत्पत्ति हो जाती है । निगोदेष्वथ तिर्यक्षु, तथा नरकवासिषु । उत्पद्यन्ते मृषावाद - प्रसादेन शरीरिणः ।। ५६ ।। असत्य भाषण के प्रसाद से जीव निगोद में, तिर्यञ्च गति में तथा नारकों में उत्पन्न होते हैं । टिप्पण - पहले असत्य भाषण का इसी लोक में होने वाला फल बतलाया गया था । यहाँ उसका पारलौकिक फल दिखलाया गया है । सत्य और असत्य - भाषी ब्रूयाद् भियोपरोधाद्वा, नासत्यं कलिकार्यवत् । यस्तु ब्रूते स नरकं, प्रयाति वसुराजवत् ॥६०॥ कालिकाचार्य की तरह मृत्यु आदि के भय से या शील-संकोच के कारण भी असत्य भाषण नहीं करना चाहिए । जो इन कारणों से सत्य भाषण करता है, वह नरक गति को प्राप्त करता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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