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________________ द्वितीय प्रकाश ३ सम्यक्त्व के लक्षण शम - संवेग - निर्वेदानुकम्पाऽऽस्तिक्य-लक्षणैः । लक्षणः पञ्चभिः सम्यक्, सम्यक्त्वमुपलक्ष्यते ॥१५।। शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य---इन पाँच लक्षणों से सम्यक्त्व का भली-भाँति जान हो जाता है। टिप्पण- सम्यक्त्व प्रात्मा का एक शुभ परिणाम है । वह इन्द्रियगोचर नहीं है...तथापि शम, संवेग आदि लक्षणों से उसका गनुमान किया जा सकता है । शम अादि का अर्थ इस प्रकार है शम --अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ का उदय न होना। २. नंवेग----मोक्ष की अभिलाषा होना। सम्यग्दृष्टि जीव नरेन्द्रों और सुरेन्द्रों के सुख को भी दुःख रूप मानता है। वह उनकी अभिलाषा नहीं करता। ३. निर्वेद - संसार के प्रति विरक्ति होना। ४. अनुकम्पा---बिना भेदभाव से दुखी जीवों के दुःख को दूर करने की इच्छा होना। यह प्रात्मीय है या यह पराया है, ऐसा विकल्प न रखते हुए प्राणी मात्र के दुःख को दूर करने की इच्छा होना अनुकम्पा है। अनुकम्पा के दो भेद हैं-- द्रव्यानुकम्पा और भावानुकम्पा । सामर्थ्य होने पर दुखी के दुःख का प्रतीकार करना 'द्रव्य-अनुकम्पा' है और हृदय में आर्द्रभाव उत्पन्न होना 'भाव-अनुकम्पा' है। ५. प्रास्तिक्य----सर्वज्ञ वीतराग द्वारा उपदिष्ट तत्वों पर दृढ़ श्रद्धा होना। उक्त पाँच लक्षणों से अप्रत्यक्ष सम्यक्त्व भी जाना जा सकता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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