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________________ योग-शास्त्र : एक परिशीलन योग का महत्व विश्व की प्रत्येक प्रात्मा अनन्त एवं अपरिमित शक्तियों का प्रकाश-पुञ्ज है। उसमें अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख-शान्ति और अनन्त शक्ति का अस्तित्व अन्तनिहित है। समस्त शक्तियों का महास्रोत उसके अन्दर ही निहित है। वह अपने आप में ज्ञानवान है, ज्योतिर्मय है, शक्ति-सम्पन्न है और महान् है। वह स्वयं ही अपना विकासक है और स्वयं ही विनाशक (Destroyer) है। इतनी विराट शक्ति का अधिपति होने पर भी वह अनेक बार इतस्ततः भटक जाता है, पथ-भ्रष्ट हो जाता है, संसार-सागर में गोते खाता रहता है, अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता है, अपने साध्य को सिद्ध नहीं कर पाता है। ऐसा क्यों होता है ? इसका क्या कारण है ? वह अपनी शक्तियों को क्यों नहीं प्रकट कर पाता है ? : : यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। जब हम इसकी गहराई में उतरते हैं पौर जीवन के हर पहलू का सूक्ष्मता से अध्ययन करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जीवन में योग-स्थिरता का प्रभाव ही मनुष्य की असफलता का मूल कारण है। मानव के मन में, विचारों में एवं जीवन में एकाग्रता, स्थिरता एवं तन्मयता नहीं होने के कारण मनुष्य को अपने पाप पर, अपनी शक्तियों पर पूरा भरोसा नहीं होता, पूरा विश्वास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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