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________________ ज्ञान : श्रेयस् का योग योग शब्द की व्याख्या करते हुए, आचार्य श्री हेमचन्द्र जी कहते हैं, कि ज्ञान-दर्शन और चारित्र यही योग है । तत्वार्थ सूत्र में यह स्पष्ट कहा गया है, कि “सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्राणि, मोक्ष मार्गः ।" यहां सर्व प्रथम 'ज्ञान क्या वस्तु है ?' इस को समझना • बहुत आवश्यक है । यहां शास्त्रकार ज्ञान की परिभाषा देते हैं । यथावस्थित तत्त्वानां, संक्षेपाद विस्तरेण वा। योऽवबोधस्तमत्राहुंः, सम्यक्ज्ञानं मनीषिणः ॥१७॥ अर्थ-तत्व ज्ञान क्या है ? जो वस्तु जैसी है, उस को वैसा जानना । भले वह संक्षेप से जानो, भले विस्तार से जानो, लेकिन जो कुछ जानो, जैसा है, वैसा जानो। इसे कहते हैं सम्यक् ज्ञान । विवेचन-यह छोटी सी परिभाषा है। वर्तमान में व्यक्ति सम्यक् ज्ञान की परिभाषा कर लेता है, सम्यक् ज्ञान को समझ लेता है, लेकिन सम्यक् ज्ञान के द्वारा व्यक्ति को क्या-क्या प्राप्त होता है, यह समझने की कोशिश नहीं करता। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद भगवद गीता में ज्ञान के विषय में बहत सुन्दर बात कहते हैं। उन का कहना है न हि ज्ञानेन सदृशं, पवित्र मिह विद्यते। सर्व कर्माखिलं पार्थ, ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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