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योग शास्त्र
जब मन तथा इंद्रियां अपने विषयों की आसक्ति को छोड़ देंगी, वचन तथा काया, अहिंसा तथा सत्य आदि की अग्नि में तपाए जाएंगे, तब माला, जाप, साधना आदि में मन लगेगा । यह मन कहीं न कहीं अवश्य ही रहता है। इसे अशुभ में लगा लेंगे, तो यह और भी अशुभतर बन जाएगा। इसे शुभ में लगाओगे. तो यह शुभतर बन जाएगा।
The Human heart can never take the state of rest, Bad goes to worst and better goes to best. ___ वर्तमान के साधकों का मन इसी लिए भटकता रहता है, क्योंकि वह भोग तथा त्याग-दोनों में लगा रहता है । यदि योग, संन्यास एवं त्याग में मन को तल्लीन करना है, तो संसार से मन को थोड़ा-थोड़ा हटाते चले जाओ तथा प्रभु भक्ति में स्वयं को तल्लीन करते जाओ।
सम्राट अकबर एक बार मस्जिद में बैठ कर नमाज पढ़ रहे थे। इतने में एक युवती, जो अपने प्रेमी से मिलने के लिए जा रही थी, वहाँ से निकली। विलंब हो जाने के कारण वह मस्जिद के छोटे मार्ग से ही जा रही थी । वह अपने प्रेमी के प्रेम में मग्न हो कर यह भी न देख सकी, कि मार्ग में बादशाह बैठा है । वह भागते-भागते न केवल बादशाह से जा टकराई, अपितु बादशाह के ऊपर गिर पड़ी । अकस्मात् मानो वज्रपात हुआ हो, बादशाह चमक गया। उस ने उस युवती को देखा तथा क्रोधावेश में आ कर बोला, "अरी नादान ! यह क्या कर रही है, देख कर चलना नहीं आता । सामने पड़ी हुई सूई भी नज़र आ जाती है और तुझे मार्ग में बैठा हुआ बादशाह भी नज़र नहीं . आया ? अन्धी तो नहीं हो गई है ?"
बादशाह का क्रोध से रक्तिम मुख देख कर युवती बौखला
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