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प्रथम प्रकाश
अतः एव आचार्य हेमचन्द्र इस योग के क्रम में यम नियम को प्राथमिकता देते हुए कहते हैं:
अहिंसा सूनृतास्तेय ब्रह्मा किंचनता यमाः ॥ नियमाः शौच संतोषौ, स्वाध्याय तपसी अपि । देवता प्रणिधानं च करणं पुनरासनं ॥ प्राणायामः प्राणयामः, श्वास प्रश्वास रोधनं । प्रत्याहारस्त्वद्रियाणां विषयेभ्यः समाहृति ॥ धारणा तु क्वचिद् ध्येये, चिन्तस्य स्थिर बंधनम् । ध्यानं तु विषये तस्मिन्नेक प्रत्यय संततिः ॥ समाधिस्तु तदेवार्थ मात्राभासन रूपकम् । एवं योगो यमागैरष्टभिः सम्मतोऽष्टधा ॥
अर्थात् - योग के ८ अंग हैं
१. यम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह । २. नियम - शौच, संतोष, स्वाध्याय, तप, देवतानमन । ३. करण - आसन आदि करना ( व्यायामादि) । प्राणायाम - श्वास को लेना, रोकना तथा छोड़ना । ५. प्रत्याहार - इंद्रियों को स्व स्व विषयों से हटाना ।
४.
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६. धारणा - किसी एक ध्येय में चित्त को स्थिर करना । ध्यान - उसी ध्येय विषय में एकलय ( तन्मय) हो
७.
जाना ।
८. समाधि - उसी एक मात्र ध्येय का आभास ( अनुभव )
होना ।
योग के ये आठों ही अंग क्रमशः ही प्राप्त होते हैं । इन में से अन्तिम चार अंग साधना की मनोभूमि पर प्रकट होते हैं
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परमात्मा या आत्मा में एकलय हो जाने से पहले बाह्य पदार्थों से मन (इंद्रियों) को हटाना आवश्यक है, अन्यथा ध्यान से विचलित होते हुए देर न लगेगी ।
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