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योग शास्त्र
। अतस्त्वयोगो योगानां, योगः पर उदाह्यतः ।
मोक्षयोजन भावेन, सर्व संन्यास लक्षणः ॥ अर्थात्-मन, वचन तथा काया के योगों का अयोग ही वास्तविक योग है । यह 'अयोग' रूपी योग, आत्मा को मोक्ष में जोड़ता है। यह 'अयोग' रूपी योग, समस्त पदार्थों के त्याग रूप लक्षण वाला है।
इस लक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है, कि त्याग के बिना योग का कोई अर्थ नहीं। जो योगी त्यागी नहीं, वह योगी कैसा..
वर्तम न में विश्व में ऐसे अनेक योगी प्रख्यात हो चुके हैं, जो वेष से भले ही योगी प्रतीत होते हों, परन्तु वस्तुतः वे भोगी ही होते हैं। उनके पास मोटरों का काफिला, सहस्रों सेवक, विपूल धन राशि, कृषि योग्य भूमि, विशाल व्यापार, ऋद्धि, समृद्धि तथा शस्त्रों का भंडार होता है । जब वे अपने आश्रम से निकलते हैं, तो रोल्स रायस' गाड़ी के बिना नहीं । उन के आगे पीछे १०-१० मोटर कारें होती हैं। कई बार तो इन कारों में सुन्दरियों का एक पूरा. ग्रुप नुमाइश (Exibition) के लिए साथ होता है। पता नहीं लगता, कि इस ऐश्वर्य से योगी की महत्ता बढ़ती है या योगी के कारण ऐश्वर्य (सामान) की महत्ता बढ़ती है।
योग के साथ भोग का आखिर क्या सम्बन्ध है ? अतीत के कुछ वर्षों में तो हमारे गौरवमय भारत से योगियों का निर्यात भी होने लगा है । ये 'निर्यात योगी', संभवतः समस्त विश्व को अध्यात्म प्रेमी बनाने का स्वप्न, मन में संजोए बैठे हैं। - विश्व में अध्यात्मवाद बढ़े या न बढ़े, इन योगियों का वैभव तो बढ़ता ही जा रहा है । यह समझ लेना चाहिए, कि त्याग के अभाव में कोई प्राणी अल्प-काल के लिए योगी बन सकता है, सदैव के लिए नहीं।
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