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निद्रा आती है ।
आज के युग की प्रेम - मोहब्बत हृदय से सम्बन्धित नहीं होती, नयनों से सम्बन्धित होती है । इस मुहब्बत का कारण चक्षु ही होते हैं । किसी शायर ने कहा है
—
आखें जब चार होती हैं, मोहब्बत हो हो जाती है । नयनरम्य सुभोग्य सुन्दर रूप किस-किस को आकर्षित नहीं करता । नयनों को विषय से दूर रखने की आवश्यकता है । इस का एक बहुत छोटा उपाय भी है । जब भी कभी आप रूप के चक्र में उलझ रहे हों, तब विचार करें - " क्या है यह रूप ? कुछ भी नहीं । ऐसा रूप तो न केवल पूर्वभव, में, अपितु इस जन्म में भी बहुत देखा है । इस से भी सुन्दर रूप देखा है, यह रूप तो है ही क्या ? यह रूप अभी सुन्दर दिखता है, क्षणान्तर में ही यह असुन्दर हो कर घृणास्पद, द्वेष्य बन सकता है । इस रूप पर मोह कैसा ?
प्रथम प्रकाश
नयनों को कुछ नियन्त्रित करने की आवश्यकता है, अन्यथा शमा पर जलने वाले मूर्ख परवाने में तथा मनुष्य में अन्तर ही क्या होगा ?
शब्द की मधुरता, संगीत के लयबद्ध दो शब्द, किसी सुप्त, व्यक्ति को भी जागृत करने के लिए पर्याप्त होते हैं । संगीत की स्वर लहरी में मृग पागल हो कर जब शिकारी के पास आता है. तो बाण से विद्ध कर दिया जाता है । वैराग्य रस पोषक महापुरुष संगीत को 'रुदन' के नाम से अभिहित करते हैं । संगीत की धुन जिनके मन पर सवार हो जाती है, वे अपना समय व्यर्थ ही waste करते हैं । इस युग में शब्द विषय की वृद्धि के लिए रेडियो आदि अनेक साधनों का विकास हुआ है । विज्ञान से भौतिकता तथा शारीरिक विषयों की वृद्धि के अतिरिक्त और अधिक आशा भी क्या हो सकती है ?
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