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योग शास्त्र
[४६ हैं। त्वचा कोमल, कठोर, शीत, उष्ण आदि स्पर्श को चाहती है। त्वचा इन्द्रिय का विषय स्पर्श है। अभीप्सित (इष्ट) स्पर्श की कामना राग ही तो है। इस राग का योग के साथ कोई सम्बन्ध नहीं । हस्ती, हस्तिनी के स्पर्श की कामना से हो तो मारा जाता
जिह्वा की लोलुपता स्वयं में त्याज्य है । जिह्वा-लोलुपता से साधु भी स्वादु कहा जाता है । सभी इन्द्रियों में जिह्वा को वश में करना सब से कठिन है। भोजन का सम्बन्ध उदर-पूति के साथ होता है, जब कि जिह्वा का स्वाद से ही सम्बन्ध होता है। परन्तु इस से जिह्वा को प्राप्त क्या होता है ? मछली 'खाद्य' के लोभ से अपने प्राणों का बलिदान कर देती है। रसना की रसा-स्वादन वृत्ति योग में बाधक है।
सुगन्ध का सेवन, नाक का विषय है। दुर्गध से व्यथित न होना दुरभिसंधेय, दुष्प्रतिज्ञेय है । सुगन्ध के लोभ से, विकसित उद्यान के मनमोहक पुष्प को, क्षण में ही तोड़ कर सूंघा जाता है तथा फिर निर्दयता पूर्वक उसे फेंक कर उस का बहुमूल्य सुन्दर जीवन बर्बाद कर दिया जाता है । घ्राण के विषय का त्याग बहुत कठिन नहीं है । घ्राणेंद्रिय के कारण जड़ी बूटी को सूंघने वाला नाग अथवा पुष्पों की सुगन्धि को सूंघने के लिए कमल संपुट में बन्द हो जाने वाला भ्रमर, हस्ती के द्वारा सम्पूर्ण कमल नाल को भक्षित किए जाने पर जीवन लीला को समाप्त कर बैठता है तथा अपने किए पर पश्चाताप के आँसू बहाने का अवसर भी चूक जाता है।
नयन इंन्द्रिय के द्वारा रूप का दर्शन करने के बाद, शमा पर मर मिट जाने वाला परवाना, क्या प्राप्त करता है उस शमा से ? जगत् के रूपाँध प्राणियों को भस्मसात् होने के पश्चात् भी बद्धि-विवेक से कुछ लेना देना नहीं होता। रूप नयनों का विषय है । सुन्दर रूप को देखने की लालसा जब मानव के मन में उत्कट हो जाती है, तो मानव को न दिन में चैन मिलता है, न रात को
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