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________________ ४८] प्रथम प्रकाश आप दुकान पर बैठे हैं,कहीं कोई कलह हो जाता है, आप वहां भी पहुंच जाते हैं, आप कुर्सी पर बैठे हैं तथा टांगों को इधर-उधर ... हिला रहे हैं-यह काया की चंचलता है । शरीर तो सुविधा चाहता है, परन्तु शरीर की प्रत्येक सुविधा को क्या पूरा किया जा सकता है ? शरीर की सुविधा के साधन ज्यों-ज्यों बढ़-काया की माया बढ़ती चली गई । ये फ्रिज, टेबल, चेयर, टी०वी०, सोफा-सैट तथा रेडियो शरीर तथा इन्द्रियों की सुख सुविधा के लिए ही तो हैं । इन साधनों से यह शरीर स्वाधीन होगा या पराधीन ? क्या प्रतीत नहीं होता, कि ये साधन शरीर को आलसी बना रहे हैं। इन साधनों के खरीद लेने से शरीर बिक रहा है। भौतिक सामग्री की लालसा काया की तड़प को भीतर ही भीतर बढ़ा रही है। जब काया ही वश में न हो, तो मन को वश में करने की बात ही व्यर्थ जो जाती है । आप जितने टेलीविजन सैट, रेडियो सैट, सोफा सैट आदि घर में बसातें जा रहे हैं, क्या आप स्वयं उतने ही up-set नहीं होते जा रहे हैं ? सत्य यह है, कि इन सैटों से ही आप भीतर से up set हो रहे हैं। या तो आप के घर में सैट रहेगा या आप के भीतर की आत्मा सैट रहेगी। दोनों यगपद सैट कैसे रह सकते हैं। बाहर की सैटिंग(setting) अन्दर की (up setting) है। बाहर से फिट व्यक्ति अन्दर से अन-फिट होता है। शरीर की सैटिंग का तथा फिटिंग का एक फॉर्मूला है जो किसी भी सांसारिक प्राणी से छिपा हुआ नहीं। आत्मा की सैटिंग का तरीका किस को आता है ? शरीर की सार-संभाल से मोह-कामना बढ़ती है। वासना का उदय होता है। जब शरीर का "योग" प्राप्त होता है, तो शरीर नियन्त्रित हो जाता है, निष्पाप हो जाता है। शरीर की निष्पापता में से वचन की निष्पापता प्रकट होती हैं। .. पांच कर्मेंद्रियां पांच ज्ञानेंद्रियों को गलत मार्ग पर ले जाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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