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प्रथम प्रकाश मानव के लिए महती प्रेरणा का कारण है। .
योग क्या है भारतीय दर्शनों में योग की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं प्राप्त होती हैं । पातञ्जल योग दर्शन में महर्षि पातञ्जलि कहते है, 'योगश्चित्तवृत्ति निरोधः', अर्थात् अपने मन की वृत्ति का निरोध करना (रोकना) योग है। यहां यह समझ लेना आवश्यक है, कि मन की वृत्तियों के निरोध में वचन तथा काया की वृत्तियों का भी समावेश हो जाता है । मन, वचन, काया का निरोध, सर्व काया का निरोध कहलाता है। अतः सर्व प्रथम काया का निरोध होना चाहिए। निरोध तब होगा, जब काया की सहज-भावी प्रवृत्तियों का स्वतः अन्तस् से विरोध होगा। जब मन का शरीर के साथ तदात्म्य हो जाता है और वह काया को सेवक न बना कर स्वयं उस का सेवक बन जाता है, तो योग की प्राप्ति दुरूह हो जाती है । काया कोमल स्पर्श की इच्छा करती है, शीत ऋतु में उष्ण स्पर्श की तथा ग्रीष्म काल में शीत स्पर्श की आशा करती है । काया की यह आवश्यकता भी हो सकती है तथा तृष्णा भी। काया की आवश्यकता निवार्य नहीं, परन्तु तृष्णा निवार्य है। काया जब तृष्णा की कारा (जेल) में कारावासित हो जाती है, वासना की अग्नि-शिखा में स्वयं को आहूत कर देती है, स्वयं प्रकटित, अज्ञान रूपी धूम में स्वयं को लुप्त कर लेती है, माया के विकराल जाल में आबद्ध हो जाती है, जीर्णता की विभीषिका को विस्मृत कर देती है, तब पापों की निर्धू म ज्वालाएं आत्म गृह को भस्मसात् कर देती हैं तथा द्रष्टा को ज्ञात भी नहीं होता।
___ काया की माया पापों के साये तले पनपती है। काया स्वयं को गृह मानती है, गृहपति आत्मा की अवहेलना कर देती है । आत्म वंचक काया स्वयं आत्मा की छाया है, वह इस सत्य का सामना करना नहीं चाहती।
काया की 'माया' में लाखों प्राणी उलझ गए। परन्तु इस
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