________________
[४५
योग शास्त्र दो, शरीर को मत जाने दो। फिर धीरे-धीरे शरीर और वाणी का Control करने के बाद मन का Control करना बहुत आसान हो जाएगा।
दृढ़ प्रहारी डाकू ने तो चारों दिशाओं के चार द्वारों पर, डेढ़-डेढ़ मास तक कष्टों को सहन कर के, मोक्ष को प्राप्त किया था। चिलाति पुत्र मात्र ढ़ाई दिन के उपशम, विवेक तथा संवर से देव लोक में गया । यदि उस का उपशम, विवेक तथा संवर कुछ बढ़ जाता, अथवा उपशम के स्थान पर क्षय हो जाता, तो मोक्ष होने में भी विलंब न होता। . नरक के अधिकारी दृढ़ प्रहारी तथा चिलातिपुत्र, योग के प्रभाव से सद्गति को प्राप्त हुए। योग माहात्म्य पर कथित इन दृष्टांतों से, योग के माहात्म्य को समझ कर, योग साधना के लिए आगे बढ़ना चाहिए । योग साधना से जब बड़े से बड़े पापी तर जाते हैं, तो हम तथाकथित धार्मिक क्यों नहीं तर सकते ?
तस्याजननिरेवास्तु, नपशोर्मोघजन्मनः । - अविद्धकर्णो यो योग इत्यक्षर शलाकया ॥१४॥
अर्थ-जिस व्यक्ति के कान 'योग' रूपी शलाका से विद्ध नहीं हुए, उस पशु-तुल्य, निष्फल जन्म वाले व्यक्ति का जन्म न हो-यही अच्छा है।
विवेचन-तात्पर्य यह है, कि मानव जीवन को प्राप्त करके योग की साधना करना अत्यावश्यक है, अन्यथा मानव का जन्म व्यर्थ ही होगा। मानव में योग साधना न हो, तो मानव तथा पशु में अन्तर क्या ? मानव में ही विचार-शक्ति तथा शक्ति की स्फुरणा होती है । यदि उन को 'योग' में संयोजित न करके उन शक्तियों का दुरुपयोग किया जाए, तो मानव, मानव न रह कर दानव या पशु कहलाने का अधिकारी होगा । श्री हेमचन्द्राचार्य का अत्रोक्त 'पशु' शब्द उन की योग के प्रति श्रद्धा का द्योतक है तथा
.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org