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प्रथम प्रकाश कृपा एवं दया का रत्नाकर उन के हृदय में हिलोरें ले रहा था । एक कवि ने कहा है :
उदेति सविता ताम्रः ताम्र एवास्तमेति च।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च, महतामेक रूपता॥ - यथा सूर्य, उदय के समय भी लाल होता है तथा अस्त के समय भी वह श्याममुख न हो कर लाल ही रहता है । तथैव महा पुरुष सम्पत्ति, विपत्ति में या सुख-दुःख में सदैव समान रहते हैं । एक अंग्रेज कवि ने कहा हैLife is a pendulum, between joys & sorrows.
जीवन सुख दुख का मिश्रण है । भगवान महावीर ने संगम के उपद्रव को मात्र जीवन का अंग समझा । कर्म का विपाक समझा।
आंसू चार प्रकार के होते हैं- १. शोकाश्रु २. हर्षाश्रु ३. मगरमच्छ के आंसू ४. करुणा के.आंसू । इस अवसर पर भगवान महावीर की आंखों में अश्र करुणा के प्रतीक थे।
संगम देव जब देवलोक में पहुंचा, तो इन्द्र ने उस पापी को कपित हो कर देवलोक से निकाल दिया। वह वराक हो कर देवियों सहित मेरु पर्वत पर न्युषित हो गया। एक कवि ने कहा है
अत्युग्र पुण्य पापानां, इहैव फलमश्नुते । तीव्र पाप अथवा पुण्य का फल इसी लोक में मिलना प्रारम्भ हो जाता है। अति तीव्र पूण्य तथा तीव्र चारित्र पालन से परभव. में धर्म की सामग्री होती है। संगम को अति तीव्र पाप के कारण तुरन्त ही देव लोक से निष्कासित होना पड़ा।
श्रुताम्भोधेरधिगम्य, सम्प्रदायाच्च सद्गुरो। स्वसंवेदनतश्चापि, योग शास्त्रं विरच्यते ॥४॥ अर्थ-मैं इस योग शास्त्र की रचना तीन आधार लेक
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