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________________ योग शास्त्र __ क्या इन्द्र ! क्या कंडकौशिक ! दोनों ही महावीर की गुणावली से प्रभावित थे। भगवान महावीर ने चंडकौशिक सर्प को प्रभावित किया नहीं। वह स्वयं उन की सौम्यता से प्रभावित हो गया। तत्पश्चात् भगवान महावीर ने उसे उपदेश दिया। भगवान महावीर पहले ही उपदेश देते, तो संभवतः वह २-४ फूत्कार और लगा देता । महावीर पहले योग्य बने, फिर उस की योग्यता का परीक्षण किया । वर्तमान में उपदेशकों की स्वयं की योग्यता संदिग्ध होती है, अतएव प्रभाव भी संदिग्ध रहता है। .. __ चंडकौशिक सर्प, संगम, शूलपाणि यक्ष, पूतना राक्षसी तथा गोपालक के उपद्रवों से महावीर को न कष्ट हुआ, न ही उन की आयु का क्षय हुआ, क्योंकि वे निरूपक्रम आयु वाले थे। : सर्पदंश से मानव शरीर में से क्रोध के कारण रक्तवर्णी रक्त निःसृत होता है, जब कि भगवान महावीर. के चरण से शांति के कारण श्वेत रक्त निकला । उन का अतिशय भी अलौकिक था। नवरस में शांति रस तो रस राज है। प्रभु . महावीर हर्ष तथा शोक की अवस्था में भी शांत (सम) रहे, निविशेष मनस्क रहे। 'मानव को भगवान महावीर के जीवन से क्रोध की उपशांति, द्वेष तथा घृणा में समता तथा योग्यता की शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए। . . . . . . ... कृतापराधेऽपि जने, कृपामथरतारयोः । । ईषद्वाष्पायोभ, श्री वीर जिन नेत्रयोः ॥३॥ .. अर्थ-अपराधी जीवों पर कृपा तथा. दया के भाव से कंपित, तारक, (उन अपराधियों के द्वारा प्राप्स्यमान कर्म विपाक को देख कर) अश्रु से आर्द्र, भ० महावीर के नेत्रों का कल्याण हो । विवेचन :-यह श्लोक, भगवान महावीर की आंतरिक अहिंसा, विश्व करुणा तथा विश्व शिवंकरता का सचोट अद्वितीय वर्णन करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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