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योग शास्त्र
[१३ पारणे की चिंता न की थी।
भ० महावीर का समत्व, उन की साधना का प्रतिघोष था। उन का अंग अंग समता रूपी पीयूष की धारा से आप्लावित था।
__ वर्तमान में कतिपय साधु तथा कतिपय श्रावक, स्वयं को महावीर के सच्चे अनुयायी तथा सैनिक मानते हैं । वस्तुतः सैनिक की तरह अपने स्वामी की आज्ञा का पालन, अनुयायी होने का लक्षण है। महावीर समत्व शील थे, उन के अनुयायी भी समताधारी होने चाहिएं। सेनानी महावीर, समंता के बाण से, समस्त द्वष घणादि शत्रुओं को, ध्वस्त करने में सक्षम थे। उन के सैनिकों में समता का वैसा प्रतिभाव कहां? सैनिक उसे कहते हैं, जो गोली मारना जानता हो और साथ में गोली खाना भी जानता हो । जो गोली खा नहीं सकता, वह सैनिक कैसा ?
वर्तमान के तथाकथित धर्म के सैनिक, दूसरों को अपने आक्षेप रूपी बाणों से आहत करना तो जानते हैं, क्या वे स्वयं उन आक्षेपों को सहन करना भी जानते हैं । सच्चा सैनिक आक्षेप नहीं करता, आक्षेपों को सहन करता है।
महावीर के 'सैनिक' या अनुयायी बन कर कलह-क्लेश करना, कहां तक समुचित है ? यदि धार्मिक सहिष्णुता मानव में न हो, तो उसे धार्मिक कहना ही धर्म के साथ अन्याय है । गुरु नानक देव की उक्ति है-'एक ने कही, दूसरे ने मानी/नानक कहे, दोनों ज्ञानी। .
परस्पर एक दूसरे की बात को काटने वाले स्वमताग्रही, वाद-विवाद में उलझे हुए दोनों ही व्यक्ति, अज्ञानी होते हैं । एक कवि के शब्दों में- ज्ञानी से ज्ञानी मिले, करे ज्ञान की बात ।
मूर्ख से मूर्ख मिले, या घूसा या लात ॥
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