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________________ ११ योग शास्त्र इंद्रियाणां जये शूरः, धर्म चरति पण्डितः । सत्यवादी भवेद्वक्ता, दाता भूत हिते रतः ॥ . इंद्रियजयो हो शूरवीर होता है। धर्म को जीवन में स्थान देने वाला ही पण्डित होता है । सत्यवादी ही वक्ता होता है तथा प्राणीमात्र का हित करने वाला ही दानी होता है। भगवान महावीर में ये चारों लक्षण भी घटित होते हैं। अतः भगवान् महावीर का यह नाम सार्थक ही है। (५) तायिने :- भगवान महावीर तायी हैं, रक्षक हैं। संसार रूपी समद्र में निमज्जमान प्राणियों के त्राता हैं। भव दावानल से दह्यमान प्राणियों के लिए गंगाधारा के समान हैं। चिन्ता पीडित जनों के लिए मुक्ति के कारण हैं। कष्ट में प्रभु महावीर का नाम शांति प्रदान करता है । अन्धकार पूर्ण वन में भटके हए प्राणियों के लिए वे प्रकाश के पूञ्ज हैं। मगतष्णा जैसी भौतिकवाद की चकाचौंध से दूर करने वाले हैं । 'लोग नाहाणं'लोक के नाथ हैं । त्यागी ही लोक का नाथ हो सकता है, भोगी नहीं। 'लोगहियाणं'-लोक के हितकारी हैं । 'हित मित पथ्यं सत्यं' वचन के धारी होने से जगत के लिए शिवंकर हैं। प्रभु महावीर पर पूर्ण श्रद्धा होगी, तभी मानव रक्षा को प्राप्त कर सकता है । चिन्ता से मुक्त होकर समस्त दायित्व प्रभु पर छोड़ देने की आवश्यकता है । होता वही है, जो ज्ञानी ने ज्ञान में देखा है । भगवान महावीर के दो शब्दों को ही यदि हृदय में धारण कर लिया जाए, तो रोहिणेयवत् लोक परलोक तथा भवभ्रमण से रक्षा हो सकती है। पन्नगे ज सुरेन्द्रे च, कौशिके पादसंस्पृशि । ... निविशेषमनस्काय, श्री वीरं स्वामिने नमः ॥२॥ . . अर्थात--चरण कमल में नमस्कार करने वाले इन्द्र तथा पैरों में डंक मारने वाले चंडकौशिक सर्प के प्रति, समान मन वाले, श्री वीर भगवान् को नमस्कार हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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