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योग शास्त्र अरिहंताणं' के स्थान पर कुछ ग्रन्थों में 'नमो अरहंताणं' तथा 'नमो अरुहंताणं' का भी उल्लेख मिलता है।
___ 'अर्हत्' (योग्य) होने का पूजा के साथ बहुत बड़ा सम्बन्ध है। जो योग्य होता है, वह पूज्य होता है । महावीर इसी कारण से पूजातिशय से युक्त हैं । चराचर प्राणियों सहित समस्त प्रकृति उन को वन्दन करती है । मार्गस्थ वृक्ष, उन को झुक कर नमन करते हैं । तीर्थंकर के दर्शन मात्र से ही कंटक अधोमुख हो जाते हैं । सूर्य, चन्द्र, तारे तथा-समस्त ग्रह प्रभु को नमन करते हैं । नर, नरपति तथा इन्द्र आदि समस्त शासक भी प्रभ को अपना शास्ता मानते हैं। प्रभु की योग्यता बाह्य नहीं, आन्तरिक है, अतः अलौकिक है।
वर्तमान में प्रत्येक मानव उच्चपद, धन, प्रतिष्ठा आदि का इच्छुक दिखता है। वह यह नहीं देखता कि उसमें योग्यता कितनी है ? यदि योग्यता होगी, तो पद आदि स्वयमेव मिल जाएंगे। यदि योग्यता के अभाव में पद आदि मिल भी जाए, तो वह मानव उस पद को भी कलंकित ही करेगा । वर्तमान युग में क्या नेता, क्या समाज के अग्रगण्य, क्या साधु-साध्वी, सभी मान-प्रतिष्ठा चाहते हैं। यदि व्यक्ति स्वयोग्यता के विकास के प्रति सतत जागरूक रहे, तो मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति अनायास ही हो सकती है।
एक साधु को एक भक्त ने कहा, “महाराज ! अपनी सेवा के लिए कोई शिष्य क्यों नहीं बना लेते ?” साधु ने प्रत्युत्तर दिया, "मुझे शिष्य बनाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। यदि मुझ में योग्यता होगी, तो कोई न कोई व्यक्ति स्वयमेव शिष्य बन जाएगा।"
जिस समय शिष्य बनाने के लिए ६ से ८ वर्षीय बच्चों को भी दीक्षा दी जाती थी, तब गुरु वल्लभ भी ऐसा कर सकते थे। परन्तु उन्होंने बालदीक्षा का विरोध किया तथा शिष्य कम होने की कोई परवाह न की । आचार्य देव श्रीमद् विजय वल्लभ
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