________________
योग शास्त्र
[२७६ जीवन लीला समाप्त कर देते हैं, उस से अधिक लोग खा कर मरते हैं। राष्ट संघ भूख से मरने वालों की गणना प्रति वर्ष करता है। कितने लोग भूख से मरे । कितने लोग भोजन न मिल पाने के कारण मरे । भखे मरने वालों की गिनती करने से क्या लाभ ?
.. क्या उन्होंने खा कर मरने वालों की गिनती की ? भूखे मरना विवशता है, परन्तु खा कर मरना कोरी मूर्खता है लोग बारात आदि में कछ अधिक ही खा जाते हैं, लोभ के कारण । वे यह भूल जाते हैं कि माल पराया है परन्तु पेट तो अपना है। पराये माल से अपने पेट को निष्कारण बिगाड़ लेना कहां की बुद्धिमत्ता है । उन का सम्भवतः पेट भो पराया होता है। फिर वे अपाचन आदि के द्वारा रोग ग्रस्त हो जाते हैं।
सन्तोषी व्यक्ति इस बात का सन्तोष मानता है कि जितना मिला है, बहत है। अधिक क्या करना है। खुदा ! तेरा शुक्र है कि उदर पूर्ण करने को रोटी तो मिल रही है। जितना अधिक एकत्र करेंगे उतनी मन पर उस की सुरक्षा आदि की चिंता रहेगी मन पर Pressure बढेगा तो Blood Pressure भी बढ़ेगा। जितना त्याग करोगे उतनी राहत (शांति) मिलेगी।
पाप करके कमाने वाला तथा उसके पश्चात् दान देने वाला उतना पुण्य नहीं कमाता जितना कि मात्र संतोषी कमा लेता है । - धन कभी स्थायी नही रह सकता । धन को देख कर मानव की आंखें खुल जाती हैं परन्तु “लक्ष्मी स्वभाव चपला" लक्ष्मी कभी आप के पास है तो कभी दूसरे के पास । “लक्ष्मी पुण्यानुसारिणी" लक्ष्मी पुण्य से प्राप्त होती है।
Riches have wings वैभव के पंख होते हैं । एक बार .. इक्ट्ठा किया हुआ क्या सदा आप के पास रहेगा ? नहीं ? उस के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org