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अपरिग्रह भी पंख होते हैं। उसे दूसरे के पास जाते देर नहीं लगती, वह पैसा कोई ठग सकता है, हानि में जा सकता है, यह किसी भी प्रकार के नष्ट हो सकता है ? आप कभी ज़मीन में रुपये को दवा देते हैं, परन्तु जब खोदते हैं तो आवश्यक नहीं कि वह वहां से निकल ही आएगा, वह वहाँ से सरक भी सकता है। वह फिर किसी अन्य को भी मिल सकता है।
आप गढ़े हुए धन का उपयोग करें या न करें, उस के होने मात्र से परिग्रह का पाप आप को लग गया। __एक थी बुढ़िया । उसने आधा किलो स्वर्ण आभूषण अपने परिवार वालों से छुपा कर एक गोखले में रखा था। वह अपने पति या परिवार वालों को नहीं बतलाना चाहती थी कि मेरे पास स्वर्ण भूषण हैं। वे थे Private Ornaments इसीलिए इन्हें संभाल कर रखना कठिन भी था। कहीं रखे तथा कोई देख ले या ले जाए तो भी ठीक नहीं था। लोभ से मानव बहुत दूर की सोचता है।
बढ़िया को पुत्र के व्यापार के कारण किसी अन्य स्थान पर जाना पड़ा। बुढ़िया ने सोचा कि मैं यह सोना साथ में ले जाऊं या नहीं। सुवर्ण का मोह उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था। ___अन्ततः उस ने वह सुवर्ण अपने मकान के एक गोखले में छिपा दिया। उस पर रेत तथा सीमेंट लगा दिया तथा वहां से अन्यत्र चली गई। मकान किराए पर देने का लोभ भी वह संवरण न कर पाई । मकान के किराएदार ने एक दिन एक कील दीवार में लगानी चाही, तो पाया कि वह कील अन्दर ही जा रही है, वह समझ गया कि यहाँ पर कोई गोखला होना चाहिए। उस ने वहां से दीवार को तोड़ा तो वहां से सुवर्ण निकला । वह तो प्रसन्न हो गया तथा एक दिन मकान छोड़ कर चला गया। कितना अच्छा अन्जाम हुआ लोभ का ?
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