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योग शास्त्र
एक English Writer ने कहा है
Poverty is the mother of health. गरीबी स्वास्थ्य की जननी है । मानव जितना धनाढ्य होता आता है उतना ही वह अस्वस्थ होता जाता है । उस का पेट बढ़ जाता है, उसमें अशक्ति हो जाती है । एक स्थान पर बैठे रहने से पाचन शक्ति कम हो जाती है ।
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जितना, कम पैसे वाला जी सकता है, उतना अधिक पैसे वाला नहीं जी सकता । जितना कम खाने वाला जी सकता है उतना अधिक खाने वाला नहीं जी सकता ।
अतएव धनाढ्य लोगों में ही अधिक Heart Trouble होती है । कभी किसी गरीब को heart disease से मरते देखा आपने ! सम्भवतः न देखा होगा, यह हृदयरोग सुरक्षित है धनी लोगों के लिए |
ऐसा क्यों होता है ? तनाव भी धनी व्यक्तियों को ही अधिक होता है, क्यों ?
वस्तुतः वे स्वयं ही इस के कारण हैं । धनाढ्य लोग चिंता में डूबे रहते हैं । कभी कारखाना नहीं चलता, कभी हानि हो गई, कभी उपद्रव हो गया, कभी competition हो गया, कभी मार्किट फेल हो गई, तो कभी दीवाला निकालने की नौबत आ गई ।
सुख
क्या करे वह बेचारा ! से जीना तो उस के भाग्य में ही लिखा नहीं होता । कुछ प्रतिशत लोग ही ऐसे होते हैं जो धनी होने पर भी प्रत्येक बात में सुखी होते हैं ।
स्वयं के आचरण से ही धनवान् अधिक नहीं जी पाता । जैसे रक्त का शरीर में प्रवाहित रहना ही स्वास्थ्य के लिए शुभ होता है । रक्त का शरीर में कहीं भी रुक जाना, जम जाना
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