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अपरिग्रह बारात के समय घोड़ी को बार-बार आभूषण पहनाए जाते हैं । वे आभूषण घोड़ी के ही हैं ? उसी को पहनाए जाते हैं उसी के कारण खरीदे गये हैं। उन आभूषणों को घोड़ी वाला नहीं पहन सकता। ____ क्या घोड़ी को उन आभूषणों को पहनने से परिग्रह का पाप लगेगा? । घोड़ी को उन आभूषणों पर मूर्छा नहीं होतो । मूर्छा तो. घोड़ी वाले को होती है। घोड़ी तो आभूषणों को जानती नहीं, पहचानती नहीं। आभूषण उस पर रखे जाएं तो क्या ? न रखे जाएं तो क्या ?
परिग्रह तो मन का होता है । कुछ भी एकत्र करने के पश्चात् यदि मन में यह विचार आ गया कि हम ने इक्ट्ठा किया है। हम किसी दूसरे को क्यों दें, तो परिग्रह का प्रारम्भ हो जाता है। परिग्रह से मुक्ति के लिए संतोष चाहिए। कभी संतोषी ही अधिक सुखी होता है। ___ अधिक धन कमाने वाला प्रायः दुःखी होता है तथा अल्पधनार्जन करने वाला सुखी होता है। संतोष से वह सदैव आनन्द का अनुभव करता है । उस की सम्पत्ति मर्यादित है, परन्तु संतोष से वह सुखी है।
धनी की सम्पत्ति, ज़मीन, जायदाद, अशान्ति का कारण बनते हैं। तभी तो एक चिंतक ने कहा है कि, “गरीबी एक वरदान है । जब धन बढ़ जाता है तो मानव के मन पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है तथा स्वास्थ्य पर भी उस धन का कुप्रभाव पड़ता है।
वर्तमान में धनी जितने अस्वस्थ हैं, गरीब उतने अस्वस्थ नहीं हैं। कारण ? कारण स्पष्ट है कि धन के लोभ में स्वास्थ्य पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।
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