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________________ योग शास्त्र [२७५ एक व्यक्ति के पास कुछ नहीं है परन्तु ममता शेष है तो वह परिग्रही है। यदि एक व्यक्ति के पास सब कुछ है, परन्तु ममता नहीं है तो वह अपरिग्रही है ? यथा भरत महाराजा का दृष्टांत__ भरत चक्रवर्ती के पास में षट्खण्ड की समृद्धि थी। ६४००० रानियां थीं, ६६ कोड़ पदाति तथा कोड़ों रथ आदि थे परन्तु सब कुछ होने पर भी उस पर ममता न थी। वे यह समझते थे कि संसार एक सराय है। इस सराय में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति मुसाफिर है ? मुसाफिर सराय में आता है । २-४ दिन में वापिस चला जाता है। यह राही उस धर्मशाला को न खरीद सकता है, न उस पर वह मोह रख सकता है, क्योंकि उस में उसे अधिक रहना नहीं है। . ___ सराय में मुसाफिरों से दोस्ती क्या ? आज है कल नहीं है । वहां मिले हुए व्यक्ति क्या बार-बार मिलते हैं एक शाखा पर रात्रि के समय सोने वाले २ पक्षी क्या पुनः कभी उस शाखा पर एकत्र होते हैं । संसार में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति मुसाफिर है। वह थोड़े दिन यहां रह कर आगे के लिए कूच कर जाता है । वृक्ष पर रात्रिवास करने वाले कौए या सराय यात्रियों के मध्य क्या सम्बन्ध हो सकता है ? कोई नहीं । इसी प्रकार समस्त संसार भी मेहमानों-मुसाफिरों का डेरा है। कौन रिश्तेदार ! कौन सम्बन्धी ! किस से प्रेम किया जाए ? .... समस्त पदार्थों का उपयोग करते हुए भी भरत महाराजा अपरिग्रही थे तथा वे मुक्ति को प्राप्त करने में भी सफल हुए। साधु के पास संयम के निर्विघ्न पालन के लिए ओघा, आसन, मुंहपत्ति आदि उपकरण होते हैं । उन उपकरणों पर यदि साधु की ममता नहीं तो साधु अपरिग्रही है। प्रश्न यह नहीं कि आप के पास में क्या है । प्रश्न तो यह है कि जो कुछ भी आप के पास है, उस से आप को प्रेम कितना है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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