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ब्रह्मच य जाता है। यह सब विशुद्ध संयम तथा श्रद्धा का महिमा गान है।
विजय सेठ, विजया सेठानी, जिनदास सेठ, जिनदासी श्राविका, सुदर्शन, मलयासुन्दरी, सुलसा, भद्र मुनि, बाहुमुनि, पुण्डरीक, करकण्डू, पद्मावती (कोणिक की पत्नी) चूला तथा रेवती का चरित्र भी एकनिष्ठ ब्रह्मचर्य के पालन के लिए प्रेरित करता है।
ब्रह्मचर्य पालन के लिए ५ भावनाएं शास्त्रों में बताई गई हैं। इन पांच भावनाओं में ही ब्रह्मचर्य की ६ वाड़ों का समावेश हो जाता है।
१. स्त्री नपुसंक तथा पशु के स्थान का त्याग, स्त्री के साथ एक आसन का त्याग जहां भीत्यन्तर में दम्पति रहते हों तो उस उपाश्रय-वसति का त्याग, सचित्त अचत्त भोगोपकरणों का त्याग ।
२. सराग स्त्री कथा का त्याग, स्त्री के वेष, हाव भाव ईक्षा (दृष्टि) भाषा, तथा गति के वर्णन का त्याग, स्त्री के साथ अनावश्यक वार्तालाप का त्याग ।
३. पूर्वस्मृति का त्याग । ४. अंगोपांग के निरीक्षण का त्याग ।
हास्य, लीला, कटाक्ष, प्रणयकलह, शृगार रस का त्याग । जैसे सन्मुखस्थ मिष्टान्न को देखने से दाढ़ में पानी आ जाता है, तथैव स्त्री आदि प्रिय वस्तु को हर्ष पूर्वक देखने से मन द्रवित हो जाता है । इस के अतिरिक्त राग रहित दृष्टि से देखने में दोष नहीं है । अंगसज्जा, स्नान, विलेपन, धूप तथा शरीर शृगार का त्याग।
५. सरस तथा अधिक भोजन का त्याग । क्योंकि धातु के पोषण से वेदोदय की संभावना रहती है।
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