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योग शास्त्र
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दिया । धन्ना सेठ का यह साहस अवर्णनीय है । पत्नियों के द्वारा पुनः पुनः प्रार्थना करने पर भी वे गृहस्थाश्रम में वापिस न लौटे ।
दशार्णभद्र, गजसुकुमाल, अवंतिसुकुमाल, धन्ना अणगार शाब, प्रद्युम्न, विष्णु कुमार, आर्द्र कुमार, प्रसन्न चन्द्र, श्रेणिकपुत्र, युवराज, राजा महाराजा, सुकोशल आदि संसार तथा पत्नियों को ठोकर मार कर कल्याण पथ पर चल पड़े, यह उनके अपूर्व वैराग्य का द्योतक तथ्य है ।
भीष्म ने अपने पिता के सुख के लिए ब्रह्मचर्य की भीष्म प्रतिज्ञा ले कर भीष्म नाम को सार्थक किया ।
नंदीषेण मुनि ने यद्यपि १२ वर्ष तक निकाचित कर्मों के कारण वेश्या के घर में वास किया परन्तु वहां भी वे प्रतिदिन १० व्यक्तियों को प्रतिबोधित करते रहे, तथा अन्त में वेश्या तथा स्त्रियों का मोह छोड़ कर विशुद्ध ब्रह्मचर्य के धारी बने । धन गरि अणगार सुनंदा नाम की पत्नी को छोड़ कर संयत बने ।
युवावस्था
भद्रा सेठानी ( शालिभद्र की माता ) मदन रेखा, दमयंती, चंदना नर्मदा, मनोरमा, मूलदेव, दृढ़ प्रहारी, अंजना, ज्येष्ठा (नंदिवर्धन की पत्नी तथा चेटक महाराजा की पुत्री ) चेलना, सुज्येष्ठा, प्रभावती, शिवा, कुन्ती, द्रौपदी, श्री कृष्ण की रुक्मिणी आदि पत्नियां, कलावती, जयन्ती श्राविका, सीता, ऋषिदत्ता, धारिणी (राष्ट्र वर्धन राजा की पत्नी) इन सत्पुरुषों तथा सतियों ने दीक्षा अंगीकार की थी ।
में
भरत, मरुदेवी, कपिल केवली, पृथ्वीचन्द्रगु सागर, नागकेतु, कयवन्ना, इलाचिपुत्र, चिलातिपुत्र, मंकचूल, नंदा (श्रेणिक सम्राट् की पत्नी) सुभद्रा, धारिणी (मेघ कुमार की माता ), धारिणी शतानिक की पत्नी) श्रीदेवी देवकी, इन सत्वशील व्यक्तियों दीक्षा धारण नहीं की । फिर भी इन का प्रातः स्मरण किया
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