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के लिए प्रधान कारण समझा ।
दीक्षा
ज्येष्ठा ने चिल्लना का अपहरण हो जाने के पश्चात् ली तथा संयम धर्म की आराधना की ।
ब्रह्मचर्य
रुक्मिणी आदि कृष्ण की पट्टरानियाँ सतीत्व का अवतार थीं । अतएव भरहेसर की सज्झाय में उन का पावन नाम स्मरण किया जाता है ।
देवकी वसुदेव की पत्नी थी । कंस के द्वारा उस के ६ पुत्रों को तथाकथित रूप से मार दिए जाने पर भो वह हताश नहीं हुई थी । वसुदेव को ७२००० रानियाँ होने पर वे पति के प्रति ही अनुरागिनी रही।
जयन्ती श्राविका जो शतानिक महाराजा की भगिनी थी, भगवान् महावीर की परम उपासिका श्राविका थी । वह भगवान् महावीर से सदैव चर्चा विचार गोष्ठी किया करती थी । उस की तत्त्वरुचि तथा धर्मं रुचि अनुपम थी ।
स्थूलभद्र की यक्षा आदि बहिनें साध्वी बनी थीं तथा अपने सतीत्व के कारण ही वे जगत्पूज्या बनीं ।
पुष्पचूला साध्वी सचित्त वर्षा में भी अणिका पुत्र आचार्य को गौचरी ला कर देती रही, इस सेवा तथा सतीत्व के कारण उसे केवल ज्ञान प्राप्त हो गया था ।
याकिनी महत्तरा ने हरिभद्र भट्ट को आचार्य हरिभद्र बनाया ।
मेघ कुमार ने ५०० रानियों का परित्याग करके संयम अंगीकार किया । यह उनका ब्रह्मचर्य का अलौकिक उदाहरण है ।
शालिभद्र ने ३२ सुकुमाल पत्नियों का त्याग करके संयम को स्वीकार किया, कोमल शरीर, अखंड वैभव तथा सौंदर्यवती पत्नियों का आकस्मिक त्याग, शालिभद्र के ही वश की बात है । अन्य की नहीं ।
धन्ना ने सुभद्रा आदि पत्नियों का क्षणमात्र में त्याग कर
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