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________________ २५८] . ब्रह्मचर्य दरिद्रता में दान, शक्ति होने पर क्षमा, त्याग .या गण होने पर भी प्रशंसा से दूर रहना तथा उपभोग की शक्ति होते हुए भी उसे छोड़ना यह किसी भी मानव की बहुत बड़ी उपलब्धि है। ___पुरुष प्राधान्य से इस युग में पति परमेश्वर का नारा चला है । स्त्री का तो सहज समर्पण भाव है कि वह पति को परमेश्वर मान कर चलती है। परन्तु आज के पति क्या पत्नी को परमेश्वरी मानते हैं ? पति की आज्ञा मान्य होनी ही चाहिए। परन्त पत्नी का क्या मूल्य है इस युग में ? आज पत्नी का दहेज के कारण दहन होता है । आज पत्नी को गुलाम माना जाता है । स्त्री के अधिकारों की बातें तो महिलावर्ष में बहुत हुईं परन्तु क्या प्राप्त हुआ ? स्त्री का अर्थ है परतन्त्रता की मूर्ति, दयनीयता की प्रतिमा । वस्तुतः जहां नारी का सम्मान होगा वहीं पर समृद्धि की संभावना हो सकती हैं। यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता। सती है धर्म की ज्योति, सती है कीमती मोती। सती है सत्य को बोती, सती है पाप को खोती॥ एक महात्मा थे, तपस्या के बल पर उन्हें एक सिद्धि प्राप्त हो गई थी। वह सिद्धि थी, जिसे चाहो जला कर राख कर दो। एक बार वे एक वृक्ष के नीचे ध्यान कर रहे थे । ऊपर से एक चिड़िया ने महात्मा के सिर पर बीठ कर दी। महात्मा ने जब यह देखा तो कोपायमान हो उठे । अरे ! अरे ! चिड़िया की यह ताकत ! मेरा अपमान ! महात्मा ने तुरन्त ही सिद्धि का प्रयोग किया। चिड़िया तड़पती हुई ज़मीन पर आ गिरी तथा उस के प्राण अग्नि के दहन के कारण उड़ गए। यह दृश्य सामने एक घर में अपने पति को भोजन करा रही सती स्त्री ने देखा । ___ महात्मा भोजन चर्या के लिए चले तथा उसी सती के घर ही पहुंच गए। सती स्त्री ने पति परमेश्वर के ध्यान में महात्मा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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