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ब्रह्मचर्य
२५६] से लोहा लिया तथा औरंगजेब के सेनापति शाइस्ता खां को मार दिया तो औरंगजेब ने भी किसी प्रकार से शिवा जी को कैद कर लिया । परन्तु शिवा जी स्वबुद्धि से कई बार उस की कैद से निकल भागे।
एक बार जब मुगल फौज शिवा जी के भय से हट गई तो शिवा जी के कुछ सैनिकों ने एक सुन्दर मस्लिम युवति को पकड़ लिया तथा पालकी में उसे बैठाकर शिवाजी के पास भेंट के रूप में लाए। शिवा जी ने उन को ऐसा करने के कारण डांटा। पालकी का पर्दा उठा कर देखा तो उन्होंने पाया कि उस में एक अतीव सून्दर यवति बैठी है। शिवा जी ने कहा कि "काश ! अगर आप मेरी मां होतीं तथा मैंने तुम्हारे उदर से जन्म लिया होता तो थोड़ा सा सौन्दर्य मैं भी पा जाता । यह कह कर युवति को पुनः मुस्लिम शिविर में भिजवाया । क्या संयम था शिवा जी का ! उस कन्या में रूप का नहीं, मातृत्व का दर्शन किया।
महात्मा गांधी ने भी ब्रह्मचर्य के वहुत प्रयोग किए। वे समस्त प्रयोग-भले ही वे फिर उन में उत्तीर्ण हुये हों या अनुत्तीर्ण अपनी आत्म कथा में लिख दिये । परन्तु उन की आत्म कथा से ध्वनित होता है कि गांधी जी शनैः-शनैः संयम को किसी सीमा तक प्राप्त कर चुके थे।
औरंगजेब में बहुत बुराइयां थीं। उस में अपने पिता को कारागृह में डाल दिया। भाइयों की मार दिया, परन्तु कहा जाता है कि वह सदाचार का प्रेमी था। न तो उस के जीवन में व्यभिचार था तथा न ही वह प्रजा का व्यभिचार सहन करता। एक बार उस की पुत्री अपने रंगमहल से बाहर आई तो उस ने बहत ही झीने वस्त्र पहन रखे थे। आज भी फैशन है। उस समय भी फैशन था। ढाका की मलमल तो कई शताब्दियों से प्रसिद्ध है। कुछ ढाका की मलमल जैसे पारदर्शी वस्त्र उस ने पहन रखे
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