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________________ [२५५ योग शास्त्र गम्भीर ध्वनि करते हुए बोले, ' शिष्य चिन्ता न कर ! मैं यहां आ पहुंचा हूं ।" वह बहुत लज्जा कुल होकर गुरुदेव के चरणों में पड़ गया । तथा बोला, "गुरुदेव ! आप ने जो कुछ कहा था, बिल्कुल सत्य था, यह वासना विद्वान को भी क्षमा नहीं करती ।" व्यक्ति आवेग तथा आवेश म दुराचार के मार्ग पर चल पड़ता है परन्तु जब तक वह वापिस लौटता है । सर्वस्व लुटा चुका होता है। 'Wealth is lost nothing is lost, health is lost something is lost, but if character is lost everything is lost." धन गया तो कुछ नहीं गया । स्वास्थ्य गया तो 'कुछ' गया परन्तु यदि चारित्र - आचार चला गया तो सब कुछ चला गया । एक बार भी यदि जीवन में धब्बा लग जाए तो फिर वह धुल नहीं सकता । अपने जीवन को ऐसा बना लेना चाहिए कि किसी लोभ के आगे जीवन के उत्थान का मूल्यांकन कम न किया जाए : किसी भी स्थिति में पतन न हो । " 1 कई लोग फिल्में न देखने का नियम लेते हैं । परन्तु यदि कोई कह दे कि, " एक फिल्म रिलीज़ हो चुकी है, बहुत धार्मिक है, आप साथ में चलें" तो वे साथ में चल देते हैं । क्योकि फिल्म धार्मिक है । फिल्म और घार्मिक ? आज की अच्छी से अच्छी फिल्म में भी नृत्य, डिस्को डांस, प्रेम, युद्ध के बिना कार्य नहीं चल सकता । "सत्यम् शिवम् सुन्दरम् " फिल्म का नाम कितना धार्मिक है, नाम से ही आप उस को देखने का विचार कर लेते हैं । लेकिन जिन्होंने यह फिल्मी देखी है । वे जानते हैं कि इस फिल्म में क्या है ? नाम से ही लोग जाल में उलझते हैं । धर्म के लिए क्या कोई और स्थान नहीं ? छत्रपति शिवा जी, महाराष्ट्र के इस वीर ने जब औरंगजेब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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