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ब्रह्मचर्य
महासती चलना ऐसी पतिव्रता सती स्त्री थी । श्रेणिक सम्राट् के द्वारा उस पर शंका किए जाने पर भगवान् महावीर ने उस के सतीत्व की प्रशंसा करके सम्राट् को शंका मुक्त कर दिया ।
आज आप मात्र प्रशंसा ही चाहते हैं । धनवान्, विद्वान्. शीलवान्, वक्ता होने की । परन्तु गुण के बिना कोई प्रशंसा प्राप्त नहीं हो सकती । गुण के बिना यदि प्रशंसा की जाए तो वह चापलूसी है । खुशामद है । कवि का वचन है
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खुशामद में ही आमद है, इस लिए बड़ी खुशामद है । : वर्तमान में ऐसे चापलूसों का बाहुल्य है जो अपने प्रिय को अन्धकार में रख कर निज स्वार्थों की पूर्ति करते रहते हैं । महर्षि व्यास अपने शिष्य को समझा रहे थे ।
बलवानिद्रिय ग्रामो, विद्वांसमपि कर्षति ।
" मानव की इन्द्रियां बहुत बलवान् हैं ये विद्वान् को भी पाप कर्म की ओर आकर्षित करती हैं । बुद्धिमान् व्यक्ति को किसी स्त्री के साथ एक आसन पर भी नहीं बैठना चाहिए | अपनी मां तथा बहनों के साथ भी नहीं ।"
शिष्य ने गुरु व्यास की बात मानने से इन्कार कर दिया । वह बोला, "गुरु जी, विद्वान् कभी इन्द्रियों के विषयों से आकर्षित नहीं हो सकता । विद्वान कहते ही उसे हैं जो संयम में रह सके ।' महर्षि श्री व्यास जी बोले, "प्रिय शिष्य ! मैं तुम्हें कोई शिक्षित बात नहीं कह रहा हूं। मैं तो अनुभव की बात कह रहा हूं । महर्षि जमदग्नि ने रेणुका से विवाह किया, अन्य कई ऋषियों का पतन हो गया ।”
"अतः तुझे मेरी बात को स्वीकार कर लेनी चाहिए ।" न मानने पर गुरु जी ने शिष्य की परीक्षा लेने के लिए ठान ली । बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने वाले भी संयम की परीक्षा में अनुतीर्ण हो जाते हैं ।
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