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________________ योग शास्त्र [२५३ श्री व्यास ने एक नाटक का आयोजन किया । वह शिष्य जंगल में छोटी सी झोंपड़ी बना कर बैठा है । आनन्दचित्त हो कर प्रभु के ध्यान में मग्न हैं । झोंपड़ी के बाहर मूसलाधार वर्षा होने लगी । महर्षि व्यास एक षोडशी कन्या का रूप बना कर वहाँ उपस्थित हो गये : उन्होंने द्वार खटखटाया । शिष्य ने बार-बार उस खटखटाहट को सुन कर द्वार खोला तो देखा बाहर वर्षा से क्लिन्नवस्त्रा एक षोडशी खड़ी है । शिष्य के आश्चर्य का पार न रहा। रात्रि में एकांत में एक सुन्दर नव-यौवना उन के सन्मुख खड़ी थी । शिष्य महोदय कुछ क्षणों के लिए किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गए । वे विचार करने लगे कि यह युवती इस समय यहां क्यों आई होगी ? उसे यह पता न था कि यति के पास सती को भ्रम हो ही कैसे सकता है ? 1 1 अन्ततः शिष्य ने पूछ लिया, कि 'बहन, यहाँ क्यों आई हो ।' कन्या ने उत्तर दिया, "महात्मन्, मैं घर की तरफ चली जा रही थी, मार्ग में अकस्मात् वर्षा हो गई तो मैं जलार्द्र हो गई । इसी आशय से इस आश्रम में आई हूं कि सम्भवतः यहां रात्रि पर्यंत के लिए स्थान मिल जाए। यदि स्थान दें तो बहुत कृपा होगी । मैं प्रातः स्वगृह चली जाऊंगी ।" शिष्य जी घबरा गए। एक तरफ एक कन्या की शरण का प्रश्न था और एक तरफ संयम के टूटने का मानसिक भय था । इस परिस्थिति में शिष्य ने उपकार करना चाहा । परन्तु कुटिया में इतना स्थान भी न था कि २ व्यक्ति आराम से सो सकें । एक तरफ खड्डा था तथा दूसरी ओर सिंह था । शिष्यराज ' इतः कूपः उतः सिंहः' की स्थिति में थे । स्थान कन्या को दे दिया गया, शिष्य राज कुटज के बाहर आसन जमा कर बैठ गए । वे विद्वान् थे अतः कन्या को शिक्षा देते हैं कि यह जंगल है । वन में भी मुसाफिर आ सकते हैं। रात्रि के समय यदि कोई व्यक्ति तुम्हारा द्वार खटखटाए तो द्वार मत खोलना । कोई कितना भी यत्न करे प्रातः से पूर्व द्वार मत खोलना । यहां For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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