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________________ योग शास्त्र [२५१ देशद्रोही न होते तो क्या भारत परतन्त्रता की शृखलाओं में जकड़ा जाता ? पतित हो क र व्यक्ति अपना सर्वस्व खो देता है परन्तु पता तभी लगता है जब वह पूर्णतः लट जाता है । नैतिक पतन होने से संयम के लट जाने से शेष कुछ भी रक्षा के योग्य न रहा। यदि भारत में अल्लाउद्दीन जैसे अत्याचारी आए तो चित्तौड़ की पद्मिनी जैसी देवियों ने भी अपना जौहर दिखा कर भारत के नाम को प्रकाशित कर दिया । पद्मिनी ने १५००० कन्याओं के साथ अग्नि का शरण स्वीकार किया। अलाउद्दीन उस की शर वीरता तथा सतीत्वं देख कर लज्जित हो गया। ए व्रत जग मां दीवो रे... यह चतुर्थ व्रत जगत् में दीपक के समान है। ब्रह्मचर्य स्वयं प्रकाशित होता है । जगत को प्रकाशित करता है। यह दीपक न हो तो जगत् में अंधकार ही अंधकार छा जाए। जक्ख रक्खस्स गंधव्व, देव दानव किन्नरा। बंभयारि नमसंति, दक्कर ये करति ते॥ सभी देवता ब्रह्मचारी को नमस्कार करते हैं जो कि अत्यन्त दुष्कर कार्य करते हैं। आज हम कहाँ जा रहे हैं ? बहुत शोचनीय प्रश्न है । हमारा आदर्श पुराकाल में कैसा था और हम कैसे बनते जा रहे हैं ? पुराकाल में साधुओं का तो क्या ? श्रावकों का ब्रह्मचर्य भी अनुपम था। कुमारपाल ने पत्नी की मत्यु के पश्चात पूनविवाह नहीं किया था और वर्तमान में पत्नी की अर्थी निकल रही हो तो उसी महफिल में दूसरा रिश्ता निश्चित कर लिया जाता है । मत पत्नी के शव पर आंसू कौन बहाए ? वहां भविष्य के जीवन के लिए भूतकाल को विस्मृत कर देना ही उचित समझा जाता है। ... द्रौपदी के यद्यपि पूर्व भवोय कर्मों के कारण ५ पति थे परन्तु उस ने कभी भी किसी अन्य पूरुष का स्वप्न में भी चिंतन नहीं किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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