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________________ २५०] ब्रह्मचर्य प्राप्त होने पर उस ने अपनी एक प्रस्वेदबिंदु को जल में मिलाया तथा रोगी को जल पिला दिया। इस दवा का शीघ्र ही असर होने लगा। देखते ही वह व्यक्ति २-४ दिन में ही पूर्ण स्वस्थ हो गया । लोगों ने पूछा कि इस प्रयोग की सफलता का रहस्य क्या है ?' उस ने उत्तर दिया कि यह मेरे माता पिता के सदाचार का प्रभाव है । जब मैं बच्चा था तब एक बार मेरे देखते हुए ही मेरे पिता ने माँ के साथ कुछ ठीक व्यवहार न किया। माँ बहत लज्जित हई और बोली, "देखो। बच्चे पर इसका क्या असर पड़ेगा" और संध्या के समय मां ने लज्जा के कारण आत्महत्या कर ली। वही मां बाप का सत्व तथा शील मुझ में है अतएव मेरे प्रस्वेद ने यह चमत्कार दिखाया है । __ आज के कई यवक क्लबों में जाते हैं। वहां सभी प्रकार के कुकर्म करते हैं । उन के बालक भी अपनी युवावस्था में यदि वैसे ही बन जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है । बहत संभलने की आवश्यकता है। आज ज़माना कहां भागा जा रहा है ? सभी अंधकूप में गिरते जा रहे हैं। हमारा पावन कर्त्तव्य है कि हम अंधानुकरण न करें। जब एक अंधा कप में गिर रहा हो तो अन्य अंधे भी उस में गिरते चले जाते हैं। लेकिन आप को ऐसा नहीं करना है। आप को जो आंखें तथा बद्धि मिली है, उन के द्वारा देख कर तथा सोच कर प्रत्येक कदम उठाना है। यदि आप ऐसे ही भ्रष्ट होते चले गए तो भारत वर्ष के नाम को बदनाम करेंगे तथा ऋषि महर्षियों की धरती को कलंकित करेंगे। __ क्या भारत वर्ष की गुलामी का कारण कभी आपने खोजने का प्रयत्न किया है । प्रायः भारतवासी कहते हैं कि हम गुलाम बन गए, अतः हम पतित हो गए। यह सत्य नहीं है। पहले हम पतित हुए, फिर गुलाम बने । जय सिंह, माधव सिंह आदि पतित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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