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योग शास्त्र
[२४६ श्री लक्ष्मण जी के ब्रह्मचर्य की क्या प्रशंसा की जाए। मेघनाद को मारना अतीव कठिन कार्य था। उसे यह वरदान मिला था किसी योगी का कि जो व्यक्ति १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का निर्दोष पालन करेगा-वही तुझे मार सकेगा, अन्य नहीं । लक्ष्मण इस कार्य में सफल रहे थे । बनवास का समय उन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य से व्यतीत किया था।
श्री लक्ष्मण जी की गोद में सीता जी सुप्त थीं। श्री राम अकस्मात् वहाँ पहुंचे तथा सीता जी को इस स्थिति में देख कर चकित रह गये। उन्होंने श्री लक्ष्मण जी की परीक्षा करनी चाही तथा त्वरितगत्या शुक का रूप बनाकर एक वृक्ष पर उड़ कर बैठ गए तथा लगे एक श्लोक गुनगुनाने
तप्तांगारसमानारी, घृतकुंभ समः पुमान् ।।
जंघामध्ये स्थिता नारी, कस्य नोच्चलते मनः ॥ नारी तो तप्त अंगारे के समान है तथा पुरुष घृत घट के के समान है। जब नारी गोद में हो तो किस का मन विचलित नहीं होता है। लक्ष्मण जी ने शुक के श्लोक का उत्तर श्लोक से ही दिया।
पिता यस्य शुचिर्दक्षो, माता यस्य पतिव्रता।
द्वाभ्यां यस्य च संभतिस्तस्य नोच्चलते मनः ॥ जिस का पिता शुद्ध हो, जिस की माता पतिव्रता हो, इन दोनों के द्वारा जिस का जन्म हो, उस का मन विचलित नहीं होता । श्री राम निरुत्तर थे । लक्ष्मण के माता पिता के संयम ने ही दोनों में यह संयम भावना कूट-कूट कर भर दी थी।
एक व्यक्ति का रोग किसी भी प्रकार से ठीक न हो रहा था। घर के नौकर ने मालिक से कहा कि सभी प्रयोग तो व्यर्थ ही हो चुके हैं । "क्या मैं भी अपना प्रयोग आजमा कर देख लूं ? मुझे विश्वास है कि मेरा प्रयोग गल्त नहीं हो सकता । स्वीकृति
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