________________
योग शास्त्र
[२४७
इस
'युग में पहले से कहीं अधिक है । भारतवर्ष में तो क्या ! पश्चिम के देश तो इस विषय में बहुत आगे बढ़ चुके हैं। वे कई बार दस-दस विवाह करते हैं । दो-दो वर्ष में ही प्रथमा से तलाक लेकर द्वितीयावादी बन जाते हैं । परन्तु फिर भी शांति उनके भाग्य में दृग्गोचर नहीं होती । भारतवर्ष की संतों-महात्माओं की पृथ्वी पर प्रतिदिन हज़ारों, लाखों ऋषि अपनी उपदेश गंगा को हाते हैं । जिस से यहां पर संयम का महत्त्व आज भी स्वीकार किया जाता है : पाश्चात्य जगत् में ऐसे-ऐसे दृष्टांत मिलते हैं कि बाप के विवाह में बेटा जा रहा है। दादा-दादी की बारात में पौत्र जा रहा है । पौत्र भी प्रेम से जा रहा है ।
एक व्यक्ति ने पत्नी को तलाक दिया तथा सास से शादी की। पूर्व पत्नी अपनी मां के विवाह में सप्रेम सम्मिलित होती है । यह है संयम का दिवाला, इतना नैतिक पतन !
यदि भारतवर्ष में फिल्में, भौतिकवाद आदि इसी रूप में चलता रहा तो वही पाश्चात्य स्थिति भारत में भी आते देर न लगेगी। हमारा इतिहास कितना पावन है। एक-एक पृष्ठ खोल कर देख लीजिए | जैन इतिहास की एक- एक कथा, एक-एक जीवन चरित्र आदर्श की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करते हैं । भौतिक पदार्थ सम्मुखस्थ हों, तथापि मन का संयम प्रबल बन कर अडिग रहे, यह इतिहास की स्वर्णिम कड़ी है ।
स्थूलभद्र की कथा सब जानते हैं । पूर्वमुक्त कोशा वेश्या के घर में स्थूलभद्र मुनि षड्रस भोजन को ग्रहण करके भी भी अविकारी रहे । ८४ चौबीसी के तीर्थंकरों द्वारा ४२ कालचक्र तक उन का उदाहरण ( उत्कट ब्रह्मचर्य के लिए) दिया जाता रहेगा ।
विजय सेठ तथा विजया सेठानी ने विवाह से पूर्व गुरु म० से. क्रमशः कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष को ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org