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________________ २३८] अचाय जब गरीबों को स्वार्जित धन वितरित नहीं करते तो हमें ही यह शुभ कार्य करना चाहिए । धनाढ्यों का धन जबरदस्ती लूट कर दीन दुखियों को बांट देना चाहिए। ऐसे विचारों के परिणाम से दान के प्रभाव से वह बड़े-बड़े धनपति के घर में उत्पन्न होता है । जब उस की युवावस्था का प्रारम्भ होता है । धनादि के. भोग्य उस अवस्था में भोगांतराय कर्म उदित होता है । वह एक दिन स्नान कर रहा था तो अकस्मात् उस ने देखा कि उसके घर की वस्तुएं उड़ती जा रही हैं । स्नानगृह में उस ने देखा कि कि टब उड़ गया था । लोटे को ज़मीन पर रखते ही वह भी आकाश में उड़ गया । वह आश्चर्य चकित हो कर घर से बाहर आता है । वह देखता है कि उस के घर की मेज, कुर्सी, पलंगादि सभी कुछ उड़ते जा रहे हैं । अब तो घर का कीमती सामान भी छू-मन्तर हो जाता है । और तो और, ऐसे समय पर मकान भी उड़ जाता है । उस ने हर पदार्थ को बचाने के लिए बहुत प्रयत्न किया । परन्तु एक वस्तु पकड़े तो दूसरी उड़ने लगी, इस प्रकार उस वराक के देखते ही देखते उसकी पैतृक सम्पत्ति वहां से उड़ चुकी थी । वह शोकाकुल था, परन्तु विवश हो कर वहां खड़ा रहा । कई बार व्यापार में हानि हो जाती है । माल का जहाज़ डूब जाता है । सामान को आग लग जाती है । यह समस्त कार्य भोगांतराय कर्म का फल है । जब उपभोग का समय आता है तब उस भोग-योग्य पदार्थ का नाश हो जाता है । दान करने से सभी कुछ मिला, परन्तु चोरी से वह सब समाप्त हो गया । वह सामान उड़ कर जा कहां रहा था ? यह प्रश्न आप के मन में अवश्य होगा । उस चोर ने जिस सेठ के घर से सामान उठाया था, वह सामान वहीं वापिस जा रहा था । उस सेठ ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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