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योग शास्त्र
[२३६ माल के चोरी हो जाने के पश्चात् उसे कर्मफल माना । संयम लेने से उस के अंतराय कर्मों का क्षयोपशम होने लगा। अब वही सम्पत्ति उस सेठ को अनायास ही उस चोर के घर से उड़ कर के प्राप्त हो गई।
यदि आप का यह विचार है कि मैं किसी का माल ले लूं तथा उसे पता भी न लगने दं तो ख्याल में रखना कि उस कर्म का फल भी अवश्य मिलेगा। व्यापारी को २ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
१. कभी भूल कर भी टैक्स की चोरी मत करना क्योंकि उस का एक पैसा भी खाने पीने या भोगने में लग गया तो अनर्थ खड़ा कर देगा । इस से भय उत्पन्न होगा।
जनता ज्योतिषी तथा तांत्रिक-मांत्रिकों के पास यहां तक कि कुछ पहुंचे हुए साधुओं के पास भी जाते है तथा कहते हैं कि कोई ऐसा उपाय करें कि छाया हम पर न पड़े। ज्योतिषी तो कोई उपाय कर देगा। साधु अपनी उपासना को बेच कर कोई उपाय क्यों बताएगा ? शासन के विपरीत कार्य आप करो तथा रक्षा करे साधु ? इस से श्रेष्ठ है कि गलत कार्यों से ही अलग हो जाओ। As you sow, So shall you reap 'करोगे तो अवश्य भरोगे। ज्योतिषी तथा साधु स्वयं कर्मवश हैं । वे किसी की क्या रक्षा करेंगे। ... २. किसी के साथ ठगी, धोखा, हेराफेरी मत करना । योग्य तथा एक निश्चित आय वाला मूल्य ग्राहक से ले लो। व्यापार बरा नहीं है । व्यापार में एक ही बुराई है कि लोभ तथा
कामनाओं की वृद्धि होने के कारण भीवन चिंता-ग्रस्त तथा ..असंतुष्ट हो जाता है।
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