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________________ योग शास्त्र [२३७ अप्रामाणिक बना कर रख देगी। दूकान पर यदि एक निश्चित मार्जन पर विक्रय किया जाए तो यह सामाजिक दूषण माघ के शैत्य से नवअंकुरित पुष्पों की तरह नवोदित युवावर्ग को ध्वस्त न कर पाएगा। हेमचन्द्राचार्य ४ प्रकार की चोरी का विवरण देते हैं । १. स्वामि अदत्त-वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना वह वस्तु ग्रहण करना। २. जीव अदत्त-यदि माता-पिता (स्वामी) अपना पुत्र साधुओं को देते हैं परन्तु उस पुत्र की स्वयं की इच्छा दीक्षा धारण करने के विरुद्ध है तथापि उस जीव को दीक्षा देना आदि । ३. तीर्थंकर अदत्त-तीर्थंकर के मार्ग या विधिनिषेध या आज्ञा के विरुद्ध चलना। ४. गुरु अदत्त-गुरु की आज्ञा के बिना किसी वस्तु को ग्रहण करना। चोरी करने वाला व्यक्ति लाभांतराय कर्म का बन्धन भी करता है। उसे भवांतर में लाभ होने में अन्तराय होता हैं। उसे भोगों का उपभोग करने में भी अंतराय हो जाता है। फिर उसके पास समस्त सांसारिक साधन होने पर वह उन का भोग नहीं कर सकता। इस अंतराय के रूप में उसके शरीर में रोग, शोक आदि उत्पन्न हो जाते हैं। जिससे वह भोगोपभोग कर ही नहीं सकता। यहां तक कि कतिधा उस का अजित धन तथा भौतिक साधन उस के घर से उड़ कर अन्यत्र चले जाते हैं और वह देखता ही रह जाता है। . . शास्त्रों में एक कथा आती है । एक चोर था, वह चोरी कर करके दान दिया करता था। उसका विचार था कि धनाढ्य लोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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