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योग शास्त्र
[२३५ तथा असत्य बोल कर स्वयं को मानो एक किनारे के पीछे छुपाने का प्रयत्न करता है तो पुलिस के डंडों का 'रसास्वाद' उसे अपने कृतकर्मों पर अश्रुधारा प्रवाहित करने को विवश करता है। यदि वह तब भी सुधर जाए तो गनीमत है। अन्यथा कई चोरों ने जेल जाना एक ब्याज बना लिया है। जेल में कम से कम रोटी तो नसीव होगी, यही विचार धारा उन्हें नेक इन्सान न बनने को बाध्य करती है । समाज कल्याण की संस्थाएं अन्य अनेक क्षेत्रों में प्रगति कर रही हैं उन्हें इस क्षेत्र में भी कुछ कार्यरत होना चाहिए। इस से समाज को विश्वास, अभय, प्रेम तथा असंदेह प्राप्त होगा जो कि प्रत्येक सामाजिक प्राणी का अयाचित अधिकार है। ____ कई व्यक्तियों की प्रायिक पृच्छा होती है कि महाराज ! हमारा अचौर्य व्रत कैसा है ? क्या इस स्थूल अदत्तादान विरमण को लेकर हम आयकर तथा विक्रयकर बचा सकते हैं ? वास्तव में यह ही मन की दुर्बलता का प्रश्न है। जो नियम सरकार ने बनाये वे सभी जनता के लाभ के लिए होते हैं, स्वयं के लाभार्थ नहीं। एक व्यक्ति से मैंने पूछा, "क्या तुम आयकर देते हो?" जी हां, मैं ईमानदारी से आयकर- जो कि वार्षिक ५-६ लाख रु० बनता है-सरकार को अर्पित करता हूं।" यह उसका उत्तर था। मैंने उस को उत्तर की सत्यता की परीक्षा के लिए कहा, "तुम ऐसा क्यों करते हो ? इतना टैक्स देने के बाद तुम्हें क्या मिलेगा ? उस का समुचित उत्तर था।"महाराज! हमें टैक्स देना ही चाहिए।" अन्यथा प्रजा इसी प्रकार विचार करने लग जाए तो सरकार को देश की व्यवस्था करना कठिन हो जाएगी। हम टैक्स देकर सरकार पर कोई एहसान नहीं करते, मात्र अपने कर्तव्य का पालन करते हैं।
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